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बाई भजीतमति एवं उसके समकालीन कवि
बिनस जोगी घर घर फिर | विनस पंरा पावस तिरं ॥ forसे बैद न नारी गहै । विनसै षेवट थाह न लहै ।।६।। विनस मसानी हारिज हः । विनस शाह चोर विंग रहै ॥ विनस रूप नदी के तीर । विनस राजा बिना उजीक ।। ६६AL विनसै माप लड़ाव पूत । विनसे जो संके मन दूस ।। विनस काजी लालच करै । विनसे कुल कपूत प्रोतरं ॥७॥ विनस कोरु पीजर पढ़ । विनस नादु जो ऊंचें च- ।। विनस ठग कुछोहर वसै । विनस पान हल पालसे ।।७।। बिनस करियर काइर हाथ । विनस कायथ दुजै साथ । बिनस चोरी दिन मनगवे । विनस घर जो जेठ न छध ५७२।। थि से चोर भाह विन घस । विनसें माह न मारी सर्स ।। दिनसै दिन को गीधी जार । विनस कान हीन कुसवाल ॥७३॥ दिनस चन्दन पुनि पुनि घसै । विनर्स बहू जो हाह्ड हं ।। विनसै काजु करण जो कहै । विनस राज कुमंत्री वहै ।।७४। बार बार मंत्री गन कहै । काहू को बरज्यो नहीं रहे ।। जिम माती मैगल वलि परी । प्रांकुस रहे न एको घरी ।।७।। अवज्यों चलते मंत्र प्रत्रांन । अब कछु तुम होइ गए प्रयांन ।। नंदि निरूपगनियर परधान । सौंपति कुष्टी कौन संयान ।।७।। मां बात कोहु छिटकाइ । मंतह दुख पाबोगे राइ । तब रानौं बोलें मति मंग । मंत्री मति मूलो भ्रम रंग ।।७७॥ मूरिष हिए विधारी सुद्धि । केहो गई तिहारी धुद्धि ॥ मैं तो तिलक किमी धरि मौन । भेटन झर ताहि पौ कौन ॥७८|| तब मंत्रीगण च निसंक । कुल निर्मल मति देह कलंफ ॥ मनिष जनम गवा पद पाइ । सो तुम अब मति हारो राइ । ७६ हम में कोह दवानल दहै । मति तुम कोह दबानल लहौ ।। बात बढाये माहै क्यों और । मति गावह सिर बांषी मोर ।।।। अनि करि कोपु भयी प्रति राउ । दुष्ट भाइ बोलियो कुभान ।। राजरीति को धर्म न होछ । मंत्री तुम देखो पिय जोड ।।११ प्रभजों तो राप्यो सनमान । मब मरवाऊ करो निदान ।। मो मन और कहो तुम मौर । महक बोलें मारौं ठौर ॥३२॥