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बाई अजीतमति एवं उसके समकालीन कवि मैमासुन्दरी से धोपाल के साथ विवाह करने का प्रस्ताब
मनमें हरषवंत विकसाइ । राजा गेह पहुंती जाइ । जिह ठाझी मैना सुन्दरी । तासौं प्रथम वात उच्चरी ।। ३६।। पुत्री उत्तर देहु बिचारुि । अजहूं अपनी करम निवारि ।। पानि गृहन करौ तजि लाज । सुन्दरी जपं सुनि महाराज ||Yo|| कहा कहत है होती बांत । मुस्थ चित्त होइ सुनि ही तांत ।। जो मुनि क्रियावंत अति होइ । दरसण भिष्ट कहा की सोइ ॥४१।। की कहा धर्म जो गहै । जाकं चित्त दमा नहि रहै ।।
हः ध्यान ए। हिन्द नहीं कि । ४२॥ कीजै कहा त्याग मह दीये । जार्क क्रोध प्रगट है हिये ।। कीजं कहा युक्ति गुन रात । मेटे मातपिता की बात ।।३।। बार वार को कर बषांन । तात बचन मेरै परवान ।। निहुर चित्तं रानौं गह गयो । दुष्ट कहांनी तासौं कलौं ।। ४४।। मैं दीनी पुत्री पिय जानि । कुष्टी राउ परनि सुषमानि ।। सुन्दरि सुनं तात के बौंल । तेई मनमैं धरे अडोल ।।४५|| मनमैं कीया हरिष अपार । मिहनत जप बारंबार ।। विधी निर्मवों हीन गुनन्नत । सुनहुं तान वह मेरी कत ।।४६।। सुदर नर नरेन्द्र जे पान । ते सब देषी तुमहि समान । यह तो मिों करम निरजोस । काहू स्यौं घ राग न रोस ।। ४७|| शुभ अरु अशुभ प्रजौ हैं संग । कोऊ मति मूलौ भ्रम रंग ।। हरत परत परतीच्यौं मुझे । राजा क दोस नहिं तुझ ।।८।। पुत्री सुनियो जप राव । तेरे पोले दुष्ट सुभाय ॥ अजहुं न तजहि कर्म अति गाह । में नौ लाग होन विवाह ।।४।। विग्न एका विद्या करि लीन । सामोनिक जोतिबा परवीन । लीयो बुनाय पाप नर नाह । हररावंत पुरी के व्याह ॥५०॥ दिन सुभ परि महूरत सावि लगन धौ जोयमि प्रारघि ।। भाष्यो विग्रह तकें निरत्त । शुभ करि बासर पा जि पवित्त ।।५१|| सूर्य ससि हर सुर गुरू चाहि । बर कन्या को उत्तिम प्राहि । बरस बीस जो सोधो राइ । अलौ छौस न पहुची प्राई ।। ५२।।