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श्रीपाल चरित्र
जनम जनम को चढ कलंक । हसि है सबै राउ पर रंक !! राउ सुनित्रि जप अब तास । मंत्री क्यों निंदत सुपयांस ॥२४॥ या सन्न सामग्री सिसी। होति मौर भूपनि पं जिसी। सिर पर छत्र चंवर छ तरै । प्रार्य सूर खडग कर धरै ॥२५।। मंडारी राखे मंडार । वेसर वाहन मगन प्रपार ॥ दुखी लोग सेबत, पास । मार्ग नितुं होत है रास ॥२६॥ गाहा गीत वाद वह भेद । सौंधी बहुत भरगजामेद ।। अरु सन्न भांति देषिये सूर । भूलि न कबहू भाष कूर ॥२७॥ अरु देषिये दया अधिकार । दान देत है चित्त उदार ।। पाप बोप उद कछु कोयो । सुष अरु दु:ष अचानक दियौ ॥२८।। यह सब हि विधी पूरी प्राहि । असौ बर तजि दीजे काहि ।। वारंवार गर्यप रांउ । याहि ऊपरि मेरी भाउ ॥२६॥ यह सुनि मंत्री उठ रिमाइ । अजुगत कहा कहत ही राड ।। मन मैं संक दात तुम कहै, । वारंवार चरन से गहैं ॥३०॥ राजा सुनौ करो मत कौह । कोज कछ सुता को मोह ।। सुमतौ करत कहाणी इसी । काहू मूढ कीयो हैं जिमः ।।३१॥ पायौ नग निर्मोलिक एक । ताको कछ न किमो विबेक ॥ काग जिहाँ जहि बैठ्यौ भाइ । सो वि डारियो ताहि चलाय ।।१२।। काहू प्राय भेद जब दयौं । ताकी पिछतावा रहि गयौ ।। होत कहानी तसो एड्छ । कन्या मति कोंदी कौं देहु ॥३३॥ अपजस फैलि देस मैं जाद। अंतपि ती पिछत हो राइ ।। आग्यो सोंच काम जो करें । नात चक कबहन परे ॥३४॥ अपजस ताकौ देश न कोइ। नीक कर देषां जिग सोइ ।।
और सुनों जपे भूपाल । पाथर ले मनि नापी लाल ॥३॥ कहा कर्म पुत्री को कर । सोई होइ वातु जिय धरै ।। भीक करि तुम देषो चाहि । का मैं कछ न धोखो पाहि ।। ३६।। यह सूनि बोल्यो राइ प्रचंड 1 एण बच्चन मो लागत इंड़ ।। तुम मंत्री जानौ उनमांन । यह कारिशु ही इहै परमांन ॥३७॥ मति जपो तुम बारंबार । को समर्थ जु फेरन हार ।। बहु भोजन श्रीपालह दयो । पुर वाहरि सु गोपि पियौ ॥३८॥