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बाई अजीतमति एवं उसके समकालीन कनि
ता नन्दन हरिवाहन बरी । ताही रूप मोही सन्दरी ।। नीको वरु मो भायो तात । सांची कही मापनी बात ।।२४।। सुनि करि राउ बिचारै हियं । दाही जोग बने वा दिय ।। वोल्यो विन राइ यौं भनी । शुभ दिन जोग महरत गनी ॥२४३।। ताको बिधि सौं कियो विवाह । सवही जन मन भयो उछाह ।।
उनहू सुष मन भयो अनन्त । कौशम्बोपर गए तुरन्त ।।२४४।। मैनासन्वरी का वापिस पाना
मैंना सृदरि पहुंती तहां । नंदीमा की प्रतिमा जहां ॥
का करी सुभगा दिदी : देला होदा लियौ ।। २४५।। कछु न चित्त विचारी और । गई तहां राजा जिह दौर ।। प्राव प्राव राजा उसबरयो । गंधौदिक लं प्रागै धरयो ।।२४६॥ हाथ हि हाय अठोत्तर भरे । प्राय जिनेसुर के सिर दरै ।। इसौ गंघोदिक है, अनूप । सुर नर नाग लियौ करि चूप ।।२४।। कहै राज कहि पुत्रि बिचारि । यह कहि पाहिसु कहहि कुवारि ।। मैंना सदरि उचर बात । गंधोदिक जिनवर को तात ॥२४॥ हो। दुर्गध देह जाद, । सुदर दिव्य होइ जा लग ।। नैन निरंघह नर अौतार । नैक लग देखे संसार ॥२५६।। नक लग परि कम निकंद । जाकी इच्छ करत है इंद ॥ जनम भयो तीरशंकर जबै । साइर ले सुर लाए तबै ।।२५०।। हाय हि हाथ अटोत्तर भरे । प्राइ जिनेसुर के सिर ढरै ।। सुर अरु असुर इंदु हरसियौ । बारंबार अंग परसियौ ॥२५१।। सात सुनहि गंधोदिक सोइ । करै बंदना परमगति होइ ।। तब भूपति लै बंदना करी । धरमलीन पुत्री है खरी ।।२५२।। राजा हर्षित हूवो जांम । अर्घ सिंघासन बैठि साम ।। मां सिर जि पूछि भरि नेह । पूत्री कहो परीछण एह ।।२५३।। कीजै पून्य चित्त धाइये । तातं कहां लवधि पाइये ।। सुनि सुनि तात पयासी तोहि । जो नी के करि पूछौ मोहि ।।२५४।।
दोहा जिन सासन निरगंथ गुरु, व्रतह निर्मल देहु ।। मुक्ति धाम सब सुख करन, पुनह लमै एड ।। २१५।।