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अरिदमन राजा
करे राज परिवव नरेस ताकी बहुत आहि अलबेस || वीरदमन लहुरीता बीर । कोटी भट यह साहस धीर ॥८१॥ हयगय पाइक अगन प्रपार । परिगह बहुत लहं को सार ॥ सूर असंषि रहूँ दरबार । जे ढाबे छत्तीस हप्यार || २ ||
श्रीपाल चरित्र
भाग्या बेस दिसांतर दूरि । सुजस रह्यौ मही मैं भरि पूरि ॥ पट्टण गढ नगर भूपाल । तिनको श्राव बहुत रसाल ॥५३॥
कुन्दप्रभा रानी
एक छत्र सो आहि नरेंदु | मानों सोहं दुजी इन्दु ॥ कुदप्रभा ताकेँ अरथंग | पाठप्रत्रांनि गुणनि अभंग || ४ ||
सीलवंति सुदरि प्रति सोह। ता सम और त्रिया नहीं कोई || जैसे रामचंद्र के सीय । प्रगट पुरांन जनक की श्री ॥२६५॥
जैसे सति के रोहरिए नेह 1 जैसे कंबलर हरि के गेह ॥ समय समये के यह सुष जिसी । दिलसति पियके संगति विसौ ॥१८६॥
एकै दिन सौरनि प्रवास | सोद गई करि भोग विलास ॥ सीनि जाम निसि वीती तवें । चौथौ जाम आइयौ जब ॥८७॥
भयौ परफूलत ताको हियौ । प्रति उत्तिम सुपनों पेषियों । धवल महागिर कंचन बर्न । कलपवृछ देषियो वन ॥८६॥
तबै तहां अंधकार मिटिगयो । पहु फाटी जब पगडी भयो । बहु बुधिवंत सयांनी घरी । नाह पासि भाषं सुन्दरी ॥८६॥
सत्रदवन भरी सुनि सुन्दरी नारि । सुपने को फल कहो विचारी ॥ भूधर सुरतरु घवल जु दिठ । सो फल मन को इष्ट ॥१०॥
बहु जपै राइ सुजांन महा कुसल अरु विन प्रवान || सकल परिगह को सुषकार हैं सुन्दर तोहि कुवार ।।६१ ॥
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कंचन गिर सम है और कल्पवृक्ष सम होइ उदार । दुषी
सोभत नृभम हो सरीर ।। बनहि की करें प्रतिपार ॥१२॥