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________________ ३२ अरिदमन राजा करे राज परिवव नरेस ताकी बहुत आहि अलबेस || वीरदमन लहुरीता बीर । कोटी भट यह साहस धीर ॥८१॥ हयगय पाइक अगन प्रपार । परिगह बहुत लहं को सार ॥ सूर असंषि रहूँ दरबार । जे ढाबे छत्तीस हप्यार || २ || श्रीपाल चरित्र भाग्या बेस दिसांतर दूरि । सुजस रह्यौ मही मैं भरि पूरि ॥ पट्टण गढ नगर भूपाल । तिनको श्राव बहुत रसाल ॥५३॥ कुन्दप्रभा रानी एक छत्र सो आहि नरेंदु | मानों सोहं दुजी इन्दु ॥ कुदप्रभा ताकेँ अरथंग | पाठप्रत्रांनि गुणनि अभंग || ४ || सीलवंति सुदरि प्रति सोह। ता सम और त्रिया नहीं कोई || जैसे रामचंद्र के सीय । प्रगट पुरांन जनक की श्री ॥२६५॥ जैसे सति के रोहरिए नेह 1 जैसे कंबलर हरि के गेह ॥ समय समये के यह सुष जिसी । दिलसति पियके संगति विसौ ॥१८६॥ एकै दिन सौरनि प्रवास | सोद गई करि भोग विलास ॥ सीनि जाम निसि वीती तवें । चौथौ जाम आइयौ जब ॥८७॥ भयौ परफूलत ताको हियौ । प्रति उत्तिम सुपनों पेषियों । धवल महागिर कंचन बर्न । कलपवृछ देषियो वन ॥८६॥ तबै तहां अंधकार मिटिगयो । पहु फाटी जब पगडी भयो । बहु बुधिवंत सयांनी घरी । नाह पासि भाषं सुन्दरी ॥८६॥ सत्रदवन भरी सुनि सुन्दरी नारि । सुपने को फल कहो विचारी ॥ भूधर सुरतरु घवल जु दिठ । सो फल मन को इष्ट ॥१०॥ बहु जपै राइ सुजांन महा कुसल अरु विन प्रवान || सकल परिगह को सुषकार हैं सुन्दर तोहि कुवार ।।६१ ॥ 1 कंचन गिर सम है और कल्पवृक्ष सम होइ उदार । दुषी सोभत नृभम हो सरीर ।। बनहि की करें प्रतिपार ॥१२॥
SR No.090071
Book TitleBai Ajitmati aur Uske Samkalin Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year1984
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size5 MB
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