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________________ बाई प्रीतमति एवं उनके समकालीन कवि अपने अपने पित सब सुखी । तिह पुर कोऊ नाही दुखी ।। भास पास खातिका सुवांन । बहुत बावरी कुवा निवान ।।७१।। मरु तिहां वागर बामे सरे । सघन दाष दारों द्रुम फरे । बहुत मांतिः अमृत फल रूख । देषत जिने न लागै भूख ।।७२।। फरे नारियर अंब अभंग । वहुत करि नारिंगि सुरंग ॥ मगिनत फेला प्रौर पिजूर । रहे विजोरे जहां तहां पूर ।।७३॥ कुसुम कदम रहे बहु फूलि । रहे भ्रमर तिनके रसभूलि ।। तिहनी सोभा कहियन जाइ । जोजन बास रही महकाइ ॥७४।। वस्तु वन्ध केवरो केतकी मरो मोगरी अब जाइ, गुलाव कुजो अवर करणी रह्यौ तहां महकाइ । मंजरी अफ जुही चंपों राइ बेलि सुबास, पावर निवारी राइ चपी देखत बढ़ उल्हास फूली चमेली सरषडी मचकुद सोभित भूल, प्रवर एक सुगंध जित कित बहुत फूले फूल ।.७५।। चौपई महा फूल फूले बह भाइ। सोभा कछु कही नहि जाइ ।। कोकिल बोलत मघुरी भाष । सारो सूवा प्रगति सलाष १७६।। पांडुक षुमरी अवर चकोर । कहूक बोले विचि विच मोर ।। जो सय पंषी वरनन कहाँ । कहत कछु इक अंत न लहाँ ॥७७।। मरु तहां सुभर सरोवर भले । मानों उमगि प्राप ही चले। तिन में प्रवुजु बहुत विसाल | लेत वास लुबथे अलिमाल ||७|| चकवी धकवा केलि करांहिं । जल कुकरी तहां फहरांहि ।। जिनकी सोभति मधुरी चाल । रहं निकट बहु जूय मराल ||७|| जलचर जीव रहे जहाँ जिते । वत कथा जो वरनौं तिते ।। है मनोमि सवही विधि परी। मानौं इंद्रपुरीषि सिपरी ॥५०॥
SR No.090071
Book TitleBai Ajitmati aur Uske Samkalin Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year1984
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size5 MB
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