________________
बाई अजीतमती एवं उसके समकालीन कवि
३०३
सस पुत्र दोए पवित्र ।साल। बीकम गंगाधर नास तो ।। अनवादी विद्यानिला ।सा०। समकित रतन सुठाम तो ।।६।। गंगापरें सप उद्धरयो ।साल। भाग्य सौभाग्य समुद्र तो ।। बिसालकीति पाटि हरा सा०। देवेन्द्रकीति सुरेन्द्र तो॥६५॥ प्रकलंक सुरीने साo1 का प्रतीक यो । जिनधर्म तीहां उद्धरयो ।सा अनराजायि पूजा कीवतो ।।६।। त्रिविष प्रागम जारिण भला ।साल। विक्रमभट्ट विख्यात तो ।। विद्यादान जीणि दीयां । साo! महीयसकोति सुजात तो ।।६।। प्रजवाई तस भामिनी ।सा० सीससमकित गुण खाणतो ।। तसवि पुत्र बीशारद ।सा०। वेवेन्द्र वासुदेव जाणतो ।। ६८।। जिनवर चरण कमल सेवि साणा करि जिन शास्त्र अभ्यास तो ।। कवी देवेनें एह रच्यो ।साo! राय जसोधर तणों रास सो ।।६।। सभिल सर्व सुख संपजि सा०। पर्मबुधी होइ प्रकास तो ।। पुत्र पौत्र धान्य बन ।सा०] मंगल पानंद उत्सास तो ॥७॥ संवत १६ पाठभीसि | सा० पासी सुद बीज शुक्रवार तो। रास रथ्यो नव रस भरमो ।साल। माया नयर मझार तो ।।७।। लझे लखाविजे मणि ।सा भाव सहित सुरिण जेह तो ।। तेह घिर नष्य नध्य संपजि सा०। नित मंगल तेह गेह तो 1७२।। मुनीसुव्रत जिन अगितीलो ।साल। विकमदेवेन्द्र करि सेव तो ।। वासुदेव चक्रीरामे ।साot जयदेव कहीं स्तव्यो देव तो ५७३।। पंचकल्याणि पूजीयो |सा०। देवकीय सुयश प्रकामा तो ।। श्री सिंघने मंगल करो !सा०। सो जिन पूरवो पास तो ॥७४|
वस्तु जिन चोचीस तणा जिन चोवीस तणा
नमीते पारा । राय जसोहर तह तणो । रास रयो मे सार नीर्मल . सरस्वती माय प्रसाद थी। श्रीगुरुतरणी महिमाय उज्वल ।।