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बाई अजितमती एवं उसके समकालिन कवि
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धन जिन लनु सात हाथ । दश सत लक्षण मंडी ए । कनक बरण वीरनाथ । अण्यज्ञान करी मंगयो । ॥५४।। कुडल मुकटं मणि हार । इन्द्र त्रिकाल जिन मुखतो ए।। नमन करतां अपार । भाल पुरक्षर भुसतोए ।।५५।। घिस वरस कुमार । वैरामि लोकांतिक सेविज ए ।। दीक्षा कल्याणफ सार । कीयो सीप नमी संजम लीड ए ।१५६।। घाति करम क्षय कीष । केवलज्ञान रवि प्रगटयो ए ॥ लोकालोक कीध प्रसिद्ध । मिथ्यातम विघटयो ए॥५७।। समोसरण प्रादि होय । अनत चतुष्टय भाबीथो ए । तिहमण भवीयरण लोग । सेचि वीछित फल पावीयो ए ।।५।। सिंह लांछन जय वीर । बर्द्धमान महावीर सन्मतीय ।। महती महावीर धीर । जयो जयो अगगुरु जगपती ए ।१५६।। जमो ब्रह्मा ब्रह्मा विष्णु । थ्यापक शिवशंकर ए॥ चुस अलक्ष निःकर्म । हरी हर तू पातफहरो गए ।।६।। बोहोत्यर बरस जिन प्राय । विक्रम देवेन्द्रि पूजीयो ए । जयदेव त्रिभुवन राय । भनीप्ररण जन जय जय कीयो ए । ६१।। इम स्तबी जिन वीर । पुष्पांजलीय वधावतो ए ।। श्रेणीक साहस धीर । गणधर नमी पुण्य पावतो ए ॥६२॥ हरखीस गुणह समुद्र । बीर, इन्द्र भारती करें ए । साढीबार कोच प्रती गंद । वाजिन ध्वनी प्रति विस्तरे ए ।।६। करतो जय जय कार । इन्द्र उतारे भारती ए ।। नरखंता हरष अपार । दौठरि दुरीतनी बारती ए ॥६४।। रतन अडीत हेम थाल । रतनदीवि उग्रोतनीए । रखना रतन फूल माल । बाणे ज्ञान सुसंतती ए ।।६।। खोंसठ समर ढलंत । किनर किनरी गुण गावती ए॥ ता ता थेई थेई करंत । पछरा नाचे भवी भावतीए ।।६।। करता स्तवन बस्तु जयमाल । छंद प्रबंध मरिण सुरवर ए॥ माननी मंगल विशाल । भवीयरण जन जय जय करीए ।।६७।। करता जय जय कार । इन्द्र उसारि भारती ए । नरखता हरष अपार । दीउडे दुरीत नीवारती ए ।।६।।