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यशोधर रास
रतन जडीत भंगार | नीरमल जल पूजा करे ५ ।। धीर पागल दीयि अण्यधार । जनम जरा मरण हरिए ।।३।। ककुम केसर सार । करी चंवन पूजा भलीए ।। सुगंधि शरीर उदार । जिनगुरण पाममा मन रलीए ।१४०॥ नीरमल मोती जाण । तंदुल पंच पूज करिए। अक्षय पद नीर्वाणं । दीयो स्वामी इम भाव घरीए ।॥४१॥ जाई जुई मापद। चंपा कमल आदि फुल ग्रहीए । ती कोषो काम नीकंद । एह गुण लिहिता पूणिह सहीए ॥४२॥ पंचामृत नैवेद । उतारि हेमथाल भरीए ।। नहीं तुझ क्षुघा तृषां खेद । तेह गुण प्राप्त होय करीए ॥४३।। रतन कपूरना दीप । उतारि जोन भागलिए । तत्त्व प्रशासन रूप | केवल शान लहिया बलीए ॥४॥ कृष्णागुरु मादि धूप । जिन भागलिउ खेवितां ए॥ कर्मदाह करो भूप । अह्म तणो इम मन भावतो ए॥४५॥ मोच चोच जबीर । ग्रांवा मादि बहू फल ए ।। शिव सुख फल दीयो वीर । ती स्वामी गुण प्रागला ए ।।४६।। कनक थाल भरि करी प्रर्ध । वीर प्रालि उतारतु ए॥ रत्नत्रय जे अनर्थ्य । मागी भव दु:ख तारतु ए ।।४।। पूजा करी अष्ट भेद । श्री महावीर स्वामी तरणी ए करवा भव उछेद 1 नृत्य भावना भावी परणी एYell कूटनपोर धन धन्य । बीर जनमे जे पवित्र करयो ए ।। सीधारय नृप धन धन्य । जेह घर स्वामी अवतरपो ए ।।५।। धन धनपति यक्ष ! षट नवमास रत्नवर्षतो ए।।
चउनीकाय असंख्य । देव समूह सही हर्षतो ए ।।५।। मगवान महाबोर की स्तुति
धन धन्य त्रिमूल्यो मात । जीपीयि वीर जिन जनमयो ए॥ घन नाथ वंस विख्यात । त्रिभुवन माहि जे उपमयो ए ॥५२॥ एन धन सोधम इन्द्र' । मेरू सीखर स्मपन की ए । धन धन जिन बालचंद्र । वृधियां में जग उद्योतीयो ए ॥५३॥