________________
२८६
कूप लगवा तंब मांडयो जी। किम तेरणी अगदी उहलाय के || मारदित्त श्रवधारीयि जो । श्रह्मं जाण्यो राय दिश्वार के ॥ ५é पालखी वेसी बेह्र जणां जी द्याव्या बनह् मकार के || मुनीवरनिं पाये पडयां जी । वीनव्यो जमीमती भूप ॥६०॥ शय ताविण परवार सोहि नहीं की। तारा विएससी रूप || तीखरी गहू चीनशी जी पहनते सर के ।।६१।। मदन दावानल बली रह्यो जी मु उपरि नांखो भंगार || तुम नयतें भी करें जी । तुसही मेघश्रवतार | ।। ६२॥रा०
यशोधर रास
प्रेम जल वरसी करी जी । एह संताप निवार के ।। मानें लघु परिए किम तजो जी केम सरि प्रजा दो काज || निमित्त हवं ते वल कहो जी । दीक्षा जेवा श्राज || ६३॥ राम
बूहा
राजा का निश्चय
राय कहि पर सुखो, सुन्यो जसोवर भव जाण ॥ मोर आदि तझ लगि सही । पाप पुण्य भेद प्राण ||१||
भवसुतां मा बहूनि । हवो जाती स्मरगा सार ॥ सात भव दुःख सांभलयां । मूर्द्धा प्रावी तेणी वार ||२|| सीतल बायु चंदनें करी । कोषां सावन ॥ सूर्छा कारण ब्रह्म का । तौणि दृढ धर्म विधान ||३|| राय कहि सह राजि लोउ । पालो प्रजा परिवार ।। क्षम तम सहूं साथि करी । श्रह्मे लीउ संजम भार ॥४॥ दीघो राजमि ताने । बलतो केम लीड ब्राज ॥ राजनीति इम रहित नहीं । कवि प्रती बहू लाज || ५ || श्रथवा लीं तात मुझ तथा । वांछीजं जोय हीत || मोह काद विनास तां । एदीसी बोपरीत ॥६॥
4
बाप घोनि सूख करि । गुरु कद्रीयि से माट ॥ से राज रान मांहि भोलवि । बलिनांखिक बाट ||७|| जु बापत होत फरथ । तो देवाडो दीक्षा खार ॥ काज सीभि यम आपण दुस्तर तरीयि संसार ||६||