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________________ माई जितमती एवं उसके समकालीन कवि २६५ कामरूप एह जाणीयि तो ।भका कामतणो क्षयकार तो। काम करें ए पापणं तो म०। कामतणो दातार तो ॥६॥ हम कही दोए कर जोडीया तो ।म। सीस नमावी लागी पायतो ।। मझ जन्म सफल हवो तो भिः। तुदीठ, मुनीराय सो ॥७॥ हंग्यू कर सही ब्रह्म तणो तो ।भ० मझ सरखं दीयो काजतो।। जिम मुझ देह सफल होय तो भिल! तू सही मुनीवर राज तो ।।८।। धर्म की महिमा मुनीवर स्वामी बोलीयो तो म। मधुरीध सुललीत यास । काम कहूं एक रुबड्डू तो भिका कोटवाल सुखो सुजाण तु ॥६ घरम करो तो नीरमलो तो।। विमुवन तारण हार तो ।। जिणि फल पण, पामीइ तो । म जीव दया भंडार तु ॥१०॥ घमि नवनीधि संपजितो ।म०। हरीबल पद धमें होइ तु ॥ चक्रवति पद धर्मपी तु म। धर्म सभो नहीं कोय तो ॥११॥ लाख बोरासी हाथीया तु भा रथ तेता तूं जोम तो ।। कोड अठार तुरंगम तो मि० परम फलें सपो लोय तो ॥१२॥ कोड चौरासी पाला भला तो मला चउद रतन घर मांहि तु ।। छनऊ सहश्र अंतेडी तो ।भ०। घरम तणा फल चाह तु ॥१३॥ बत्तीस सहन मुकुट मंष सो भय राय करे नित सेब तो ।।। सोल सहन गणबष देवता तो ।म। अंगरक्षक सेवे देव तो ||१४|| छखंड तरणो से राजीसो तो भ०। ग्राम छे छनऊ कोड तो ॥ मागध वर्तन छे मादि तो मि०१ जांक्या देव सेवि कर जोड तो ।।१५।। एरिण माने प्रवर रीध तो। भगशास्त्र को बहू भेद तो ॥ धरम फलि पहा सुख लहो तो । म०१ नहीं सोक संताप देख तो।।१६|| धमि तीर्थंकर पद वली तो भला नहीयि पंच कल्याण तो । मेरु सोलर पूजा हि तो भला घरम तणि परमाण तु ।।१७।। श्रीस लाख बिमान पणी तो भ०। इन सेमिनीत नीत तो।। जाणे फिकर घर तरणों सो भव। भगत भाव धरी चीत्त तो ।।१८।। जान धरम परकासने तो भला बरीजे मुगसी नार तो॥ त्रिभुवन जस विस्तारयो तो भ०। परम तरिग विस्तार तो ॥१६॥ इन्द्र नागेंद्र उपेंद्रनो तो भका पद पामीयि धर्मि जाणतो॥ देवांगना सू क्रीडा करता तो ना अनेक देव माने प्राण तु॥२०॥
SR No.090071
Book TitleBai Ajitmati aur Uske Samkalin Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year1984
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size5 MB
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