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षट पद सुह नीरंजन एकानेक प्रातम व्यवहारि :: नांद सोदि स. प्रोकमा निहारि ध्यान बरे सुभ एक, भनेक न्यानह विस्तारी। न्यान जोत जंतु कालि, न जाशिए क्या हम रहि । वाइ अजितमति एवं वदति धर्म बिना लि नबि लाहि ।।1।। अजोध्या नयरी नरेंद्र, नाभिनंदन हेम प्रभ । मरुदेवी सुत वृषभ, वषभसेन वंदति जिन कृषभ । उन्नत धनुष सत पंच, पंच कल्याएक सुखाकर । इस्चाक चंस विक्षात, क्षात उदये दीवाकर । थी आदीदेव आदि जमो श्री वादीचंद्र सेवे सदा । बाइ अजीतमति एबं वदती, जनम जरा नावि कदा ।।2।। वंस' वडिल विशात, क्षात घिरा सुत सुन्दर । रुप कला चातुर्य, चतुर चारीत्रह मंदिर । उदयो उदरि बास, ताम' जनुनी रत्नाकर । वाणी गाजि मेघ, मेघ महु जन सुखाकर ॥ सुखाकर जतीवर जयो, श्री दादीचंद्र बादिंद्र वर । बाइ अजीतमती एवं वदती मवालसंघ प्रारद कर ।।३।। मूल उत्तरगुणसार सार क्रीया सुभ मंडित । जग मां जतीवर एह, मयए। मोहमद खंडित । विद्वजन मो एह, एह मोहि सुभ पंडित ॥ कुवादी गज सिंघ सिंघ च उवीह करी वंदति । श्री वादीचंद्र वादि निपूग्ण श्री श्री प्रभाचन्द्र पट्टाभरण बाइ अजीतमती एवं वदती सकल संघ मंगल करण ।।4।। पंच परम गुरु तेह, जेन्ह पंचमी पइ पामीय । पंच परम गुरु तेह, जेह जन सहु जयकारीय । पंच परम गुरु तेह, जेह मुगाती वर गामीय । पंच परम गुरु एहवा जे भवीण नीतरू देह धपि । बाइ अजितमती एवं पदती भव सासर ते नर तरे ।।5।।