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________________ बाई जीतमती एवं उसके समकालीन कवि संमार का बकरी होना तेहनिकूलि हूँ चंग। गरभ उपयो दुःखि भरघो हेल गरभ त सह्यां दुःख । जनम्यो मल मूत्रि भर हिल| २ | वृषि पाम्यु हूं चंग | अनुक्रम भोजन पामवो हिल। मद करी तनु दुर्गन्ध । बृतकार करता दिन वामयो || ३ | माधनो जीव वली माय । छाली सू संगम कियो । हेला दी बडेरे खाग | संगि करी पेट वीबीयो । हेला बकरी मर कर फिर बकरी होना मरी करी तेणी वार | तेह ज छाली गर्भि जपतो हेल आप पाते यदनुत्रः । 1 जूउ जुउ कर्म बीचार | पोति पोता पुत्र स्थि हूंबो हिला धिकधिक गति तीच मायप्रति भाव कीऊ जूबो | हेल || ६ || 1 बीखया वाहीयो जीव सुभ असुभ जाणी नहीं हिला हृदय सण खलां गेह । काम श्रगन लागि सही हिला ७॥ चतुरन जाणि वीचार । तु पशुनि वीवेक हुयि किम | हेल पशु पानी मिथ्याती । एत्रहणं भव नौस्फल गम | हेल || ६ || देवी काजि दीष अचेतन । तेह पापि बांधीयो । हेल। पोमी पशु अवतार से पाप बीज यिम बांधी हिला विषय जलि सींचाय । श्रातमा मंडप वीस्तरि हिल पाप वेल थिम जाण । दुःख फल देई नीस्तरे हिल||१०|| गरम मोटु हृवो जाम | ताम राजा पारष चढयो । हेल जीवह हावा काज | परणीय तेह्र हाथि नव्म चढो हल।। ११॥ भमतो भमतो जाण । नगरी समीपि श्राघ्यु फरी करी । हल | राय तक सेणी वार । दृष्ट पडी छाली खरी | हेल।। १२ ।। तेह उपरी मूक्यूँ बाण जीव गयो तेहनो सही हिला गर्भ भु पाम्पो दुःख | संसारिको कहि नु नहीं । हल || १३ ॥ राय छाली दीठ । गरभी मोई भोइ पडी ।हेला ते देखी लेणी वार | रायनि मन दया चढी | हेल || १४ || २३३
SR No.090071
Book TitleBai Ajitmati aur Uske Samkalin Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year1984
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size5 MB
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