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बशोधर राम मोर का सेहेलो के गर्भ में उत्पन्न होना
जण्यो मूखें पीड़यो । सूख तशी तेन होय ।। मोरनि मवे जे दुःस सद्यो । सेथी अधीका जोय ॥३॥ भूडो तन काटि भरघ । जीव तरणो वली भाहार *
पा पाप ज पाभयो । मारोदत्त अवधार ॥४॥ स्वान का सर्प होना
स्वान मरी सापज हो । तेह पनि प्रती विकराल ।। बख बखतो भूक्षो ममे । अनेक जीवनी काल ॥५ तव ते मम नबरें पडयो । ग्रहयो में में पूछ । खावा मदियो प्रसी बलो। हकर्ष तेह बल तुछ ॥६॥ प्रोडे थोडे सायतां । तरफ करि ते साप ।। करि कतकार घालि नहीं । नडयो मिथ्यात पाप ॥७॥ तरविक जीन एक आवयो, सेरिग हणयो हूं जाण ॥ पाप फले पती प्रति घणं । पाम्योहूं दुःख खाए । वर ते दुखनीज रही । बैंर अधारि संसार । वर ते धर्म विनासरणों । वर दुर्गती दातार ।। गुणा तरु बैर कोठारहो । बैर सुमति वन अग्गी ।। दयावल्ली वर हिम समो। तेह भणी वरम लगी ॥१॥ अम जाणी नियो करी । दर मधरसो कोय । समा रमा सूरंगे रमो । यम भव भमण न होय ।।११
भास ३व्य शोवोसीनी
उज्जयिनी की क्षिप्रा नदी का वर्णन
जुजरंगी नगरी में पासे । नदी ऊंडी नीर्मल जलें भासे ।। सीधा नाम के तासे ॥१॥
बेहु तटिय पंच वरण पारवाण । ऊपिर फोमल मोहि कठरण तू जाय। दुजगा समा घरवास ।।२।।