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________________ __ बाई मजीतगति एवं उसके समकालीन कवि २२६ मास गुणराजनी हेमवंत पर्वत एवं वन का वर्णन हेमवंत ए दक्षरण भाग 1 नगरी पासि छि गिरिवर ए॥ गुफा माहि ए सिंह रीसाल । वाटतां पाठां वनचर एश मजनसाए । गीग कडि लगा । दंतू मलेगीरी मोडता ए ।। गजतरणाए कुभबिदार 1 महीसू मुक्ताफल जोडताए ।।२।। फरगघर ए करय फूतकार । बाघ घसं वखवखी रमा ए॥ शुकर ए घूर साद । डाढ वांकी बम सम कहा ए ॥३॥ हरिण ए नाहाठडा जाय । धाय क्रूर वरू प्रती घणाए । वानरा ए फाल पलंत । दूतकार करय बीहामगाए ॥४॥ गूजा ए पडी ठोम ठाम । दव जाती हरीणां त्यजे ए ।। सीमालीयां ए फालू पोकार । मांस जारणी क्षण ते भजिए ।।५।। भीलडीए गूजा हार । फूल फल काजि पनि भमें ए ।। भीलडांग कामठो हाथ । भमतां जीवन घणं दमें ए ॥६॥ टाढडीए पीडया जाण । वानरा चीस पाडि घणं ए॥ प्पणो ठीय ए ढग्ग करिय । सेवि जाणे ए तापणं ए ।।७।। घूधूमिए चूहडजाण । समली सींचाणा पृथु भमें ए ।। माहोमाहि ए वंस घसाय । दवलागि एह संगमें ए ।।८।। दवें बल्या एफदि बांस । तण खले वन घणं व्यापीयो ए॥ तेह बनें ए मोरडी गभं । अवसरयो पा संतापयो ए ॥६ राजा का मोर के रूप में जन्म जठरनीए प्रागिहूं दूग्ध । नारकी प्रग्न्यनि कुडे जस्यो ए ॥ मलमूत्र ए सरस्यों अपार । भूष तरसें घरणं कस्यो ए ॥१०॥ मोरही र जनम्यो जाण । ताम पंखमाहि राषीयो ए। हूं फैएहवो पुष्ट यंडे । इडू फूटि तव तनू पापियो ए ॥११॥ जीवडे ए पोसतो तंन । तव भमतो प्रायो पारधी ए॥ धनुख तव' बाप माय माहारी तेरिए बधीए ॥१२॥
SR No.090071
Book TitleBai Ajitmati aur Uske Samkalin Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year1984
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size5 MB
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