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________________ बाई अजीतमति एवं उसके समकालीन कवि मात्मा को जानता है । वही आत्म सुख का अनुभव कर सकता है और जन्म मृत्यु के बन्धनों से मुक्त हो सकता है । इस प्रकार अध्यात्मिक छंद के सभी पद्य भात्म रस से प्रोत प्रोत है। इससे मालूम पड़ता है कि अजीतमसि का जीवन पूर्ण वैराग्यमय था तथा आत्म चिन्तन में उमकी अधिक रूचि थी। ___इसमें ३० पद्य हैं । अन्तिम पद्य में कवयित्री ने अपने गुरु वादिचन्द्र को नमस्कार किया है । भाषा यद्यपि अधिक परिष्कृत नही है किन्तु कवयित्री के भावों को समझने के लिये पर्याप्त है। भाषा पर गुजराती का प्रभाव है । २. षट पर. -यह लघु कृति है जिसमें केवल पांच छंद है और प्रत्येक छन्द में पांच छह पंक्तियां हैं। विषय की दृष्टि से इसमें किसी एक विषय का वर्णन न होकर एक से अधिक पर चर्चा के रूप में है। प्रथम छन्द में आत्म का वर्णन है तो दूसरे छन्द में भगवान आदिनाथ के माता-पिता, शरीर प्रमाण एवं बंश का उल्लेख हुआ है। यह छन्द नमस्कार के रूप में है।। तीसरे पद्य में भट्टारक वादिचन्द्र का परिचय दिया गया है । वादिचन्द्र ने बडिल वंश में जन्म लिया। उनके पिता का नाम थिरा एवं माता का नाम उदया था जो रत्नाकर के समान थी। वे जब प्रवचन देते थे तब उनकी वाणी मेष के समान गर्जना करती थी । वादिचन्द्र साधुओं के शिरोमणि थे । चतुर्थ पद्म में भी अपने गुरु वादिचन्द्र का ही और अधिक परिचय दिया गया है । वादिचन्द्र मूलगुरखों एवं उत्तरगुरणों सभी का पालन करते थे । अपने समय के वे प्रसिद्ध साधु थे जिन्होंने मोह एवं काम दोनों पर विजय प्राप्त की थी। उनमें विसा भी खूब थी इसलिये कुवादियों के लिये वे सिंह के समान थे । वे मट्टारक प्रभाचन्द्र के पट्ट पर विराजमान थे । बसं घडिल विल्यात, त्यात पिरा सुत सुन्दर रूप कला चातुर्य, चतुर बारोत्रह मन्दिर उदयो उदरि तास, तास जननी रत्नाकर वारणी गाजि मेष, मेघ सह जन रत्नाकर मुखाकर पतीवर अयो, श्री बाविबन्द्र पाविद्रपर भाइ मजीसमती एवं वपती सकलसंघ मानन्वकर
SR No.090071
Book TitleBai Ajitmati aur Uske Samkalin Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year1984
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size5 MB
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