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________________ १७ अष्टमी सखी सभी सोहीयोए । भालस्थल झलकेय तो ॥ मल्लयुगल विषिये रच्योए । ससि दो खंड करेय तो || ३६ || नयन जांणे दोष माछलां ए । लावण्य अलिकरि खेलतु ।। अथवा चपल गुरिंग करीए भमरा तों ए बोन तु ||३७|| कर्ण दीसि कोडम ए । जाणे अनोपम राय तो || यह सीम चांपी रह्या ए1 मोती अरमानो ठाय तो ||३८|| सुके चंचू सम नासिकाए । अथवा जागेतील फूल तु ॥ भमरी मयण धनुष समोए ।। हर हाथ मूल तो ||३६|| ए कंठ नारी हरी हा हृदय त्रीशाल कुवर तर ए । लक्ष्मी बसदा बीसेष तु ॥ ४७ ॥ + ? अमुलक मुक्ताफल तो ए । उर वर हार लसंत तो ॥ राजलक्ष्मी विवाह ए। वरमाला सम सोहत तो ॥४१॥ ॥ यशोवर रास लांबा सुज मुजंग समाए । जाणे पराक्रम रूप तो ॥ भुज श्रमुत बल पीडीश्रा ए । बीहीना सेवे बहू भूप तो ||४२ || रतन जडीत कंकरण घरणए । कनक सांकला संजुत्ततो || उन्नत खंध सभा भए । भूधरा धरण अद्भुत तू ॥४३॥ कटिके जीत्योमिलो । वली मृगराज अभीमान तो ॥ महाराज राज प्रताप जाणी ए| लाजीमो गोमो तेहरात तो ॥४४॥ युवराज पद प्रदान करना जंघा कनक थंभा जसी ए । वाटली कोमली चंग तु ॥ कमल जीत्या चरण तलेए । लाज्या जल करं संगती ॥४५॥ रूप सोमगि हूं मगलोए । लावण्य जल तरणो कूप तु ॥ जसोध राजा मझ देखीयो ए । मनोहर मनोहर रूप तो ||४३|| बूहा तब राजा मन रोकीयो, चीतवे चतुर सुजाण । अनेक मोहोलवियापीयो, युवराज पद वषाल || १ || वीवाह मोहोछवि कारणें, उद्यम करो अपार । मंत्री पाठव्यो आपणों, देश वराड मकार |१२|| I एलापोर नगर भलु श्रमरावती यम जाए ॥ राजा राज ऋरि तीहाँ, सामल बाहन सुख खाग ॥३॥
SR No.090071
Book TitleBai Ajitmati aur Uske Samkalin Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year1984
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size5 MB
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