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________________ बाई अजीतमति एवं उसके समकालीन कवि कवयित्री के जिस गुटके में उनकी रचनायें मिली हैं उसमें बीच-बीच में ऐसे पाठ भी हैं जो अधिकांश गुटकों में नहीं मिलते हैं । उस रिपि भी न सुपर नहीं है जितनी एक महिला कवि की होनी चाहिये । फिर भी जैन समाज का यह सौभाग्य है कि उसमें ऐसी विदुषी कवयित्री ने जन्म लिया और अपनी रचनाओं से एक रिक्त स्थान की पूर्ति की । राजस्थान के प्रवशिष्ट शास्त्र भण्डारों की यदि सघन खोज की जाये तो सम्भवतः और भी कुछ कवयित्रियों के नाम एवं उनका साहित्य मिल सकता है। कवयित्री अजीतमति द्वारा निर्मित तथा एक ही गुटके में संग्रहीत रचनामों के नाम निम्न प्रकार है-- १. अध्यात्मिक छन्द २. षट पर ३. भक्तिपरक पद--- ४. इतिहास परक घटनामों का वर्णन उक्त सभी रचनाओं का संक्षिप्त परिचय निम्न प्रकार है प्रयास्मिक छन्द आध्यात्मिक विषय पर प्रायः सभी जैन कवियों ने थोड़ा बहुत अवश्य लिखा है। यदि किसी कवि मे स्वतन्त्र रचना नहीं लिखी हो तो उसने अपनी प्रन्य कृतियों में ही अध्यात्म विषय का वर्णन किया है। कवयित्री भजीतमति ने भी "अध्यात्मिक छन्द" निबद्ध करके अपनी आध्यात्मिकता का परिचय दिया है। इसमें केवल ३० पछ है लेकिन सभी पद्यों में प्रात्म रस भरा हुमा है जो मानव को अपनी प्रात्मा का ज्ञान कराते हैं। अपनी मास्मशक्ति की पास्तविकता को बतलाते हैं और उसे सचेत करते हैं। क्योंकि यदि शुद्ध दृष्टि से अपने आप को देखा जाये तो अपने भीतर ही हमें मात्म प्रकाश मिल सकता है। जो खरी हुष्टि करी लिलावि, शान जोत घट भीतर पावि ॥२॥ कवयित्री प्रजीतमति ने प्रागे चलकर कहा है कि यदि "तुझे देखना ही है। तो अपनी प्रात्मा को देख । दूसरे को देखने से प्रारम ज्ञान की प्राप्ति अथवा प्रात्म दर्शन कभी नहीं हो सकता | क्योंकि दूसरों के कपड़ों को सोने से अपये कपड़े कभी नहीं घुल सकते अर्थात् अपने कपड़ों का मैल कभी साफ नहीं हो सकता
SR No.090071
Book TitleBai Ajitmati aur Uske Samkalin Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year1984
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size5 MB
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