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________________ बाई अजितमती एवं उसके समकालीन कवि १६१ श्रीमंतः सदनंतबोधनिचयाः सम्यक्तमुल्यैगुणे। युक्तायेऽष्टभिरष्ट सिद्धिकरणाः पूजया: असामिणां । थीसिद्धाः परमेष्ठिनो व्ययजनि धोव्यायनन्तोत्सवात धीरेवेनसुविक्रमस्तुतपदाः कुर्वन्तु मो मंगल ।।१।। इति श्री यशोधर महाराज चरित रास सुडामणी काय प्रतिछंदे भूदेव कवि श्री विक्रमसुत वैन विरचिते भारिदत्तनृप देवीमठागम ब्रह्म श्री मदमयषि प्ररूपिताती देशा पपनो नाम द्वितीयोऽपिकारः ।।२।। ॥छ।। तृतीय अधिकार मास भमाइलोमी उम्मयिनी नगर तह देश माहि सोहि । सो भमाहली । नामे नगरी उजेण तो। नवतेरी नगरी भली । तो भ०॥ अमर नगरी जीके तेए तो ।।१।। उन्नत गट सूना तणों । भ०। रतन बडीत को सीस तो भ०॥ जगा जोति करी जाणीयि । तोम०।। तिलक भवनी कोसीस तो ।।२।। पाखल करती स्वातिका ।।तोभ०॥ निरमल मरयू थे नीर तो॥ जाणे नगगे नागर नारी तोमपेहरयो नीले वीर तो ।।३।। राता नीला कमल भला । तोभा जाणे भरत मरी भात तो ।। ऊपवन उपें अनोपम तीम० फूल्पाछि तरु बहु जात तो ।।४।। फल रेणु पगर तिहां ।।तोभ०॥ माकासे ऊडाडे वात हो । जाणे पीलो पीछोडलो | तो भ०॥ जाणे भमरा कालीमात तो॥५॥ जाणे नगरी नायका । तो भ०।। ऊर्म स्तन गढ भार तो ।। लाजी पापण प्रापरे सोम०करें करी दाखे राग तो ॥६॥ पैरवीयि पोलि पोढा पैरवण तोमा कनक सांकल लल काय तो ।। मोटा माता हाथीया । तोभ-।। साकल्या अनेक बंधाय तो ॥७॥ तलीया तोरए झगमगि ।।तो भा रतन तणा सुविसाल तो।। मेढी मोती अबका तो०म।। मोहोल मोटे मोती जाल तो।। पोलि पातली पूतलो ।तो। विश्वामण छि अनेक तु । बोरासी मासन भनी सो० म० रूप काम शास्त्र अनेक तो l
SR No.090071
Book TitleBai Ajitmati aur Uske Samkalin Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year1984
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size5 MB
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