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बाई अजीतमता एवं उसके समकालीन कवि
लंपट भमरा कमल बंधाय । नहीं लंपट को लोक कहिवाय ।।। नर मोहि चोर नहीं कुवटी । छिनारी घण, मन चोरटी ।।२।। ट्राख मंडप दीसि काम ठाम । नागबेल बाड़ी अभिराम ।। व्यरही जननि व्यापि कौम । नारी सम वीसि पाराम ॥२७॥ सीलफ मंडीत पत्र बल्ली साथ । पातलडी दीयि तरूणा वाथ ।। प्रवाल सू उरै स्तन झूबका । विभ्रम छ प्रक्ष तणी अधिका ॥२८।। मदन मंडित भोगी सेत्रए । फूल रेणु ऊदणी सेवए ।। पंखी सादें जाणे गावे गीत । दीसे सह नामोहि चीत ।।२६।। नाग केशर नारंग जमीर । कोनोरा रामण बहु नीर ।। फणस खजरी ने नारकेर । फूलफल दीसि बहू पेर ।।३०।। मालती मोगरो ने मचकूछ । मंदार माउ बकुलह कद ।। एह मादिछि तर पर लाख । पिर पिर पंखी भोलि भाष ।। ३१।। जाणे दीन दुखी भूखीया । तैडि तरु करना सूखीया ।। पाली नदी यहि तोहा पाट । अनेक भेष सीचेवा माट ३२।। सरोवर घाव कुआ गंभीर । भरीया ते वहू नीमल नीर ।। कमल नयण जाणे जूमि समृद्ध । हंसा ना घलाणे सबद्ध ॥३३॥
नीत राणे राय लोक मनीत । देश अभय लोक प्रमयाधीत ।। सोक माहि को खल न कहिवाय । तिल पीलता सही स्खलयाय ॥३४॥ कोतकमाल तणो होयि युद्ध । कटक युध तिहां नहीं होयि सुघ । फस सम समायें तरु परछे विरुद्ध । तिहां नहीं लोक माहि क्रोध ।।३शा जिन प्रसाद दीसि प्रति चंग । गिरी गिरी नगरे नगरे उत्तंग ।। कनक कलस सोना दंडधरि । घुघरी सहीत धजा फरहरि ।।६।। अनेक लोक तीहाँ प्रावि पात्र । अण्य काल नाचे तिहाँ पात्र || दुमि दुमि मदन ताल कंसाल । होइ नफेरी नाद रसाल ।।३।। अनेक फूल फल लेई पकवान । जिस पद पूजि सुजन सूजाण ।। अनेक प्रत विर्धान पावरि । भवसागर ते हेलांतरि ।। ३८| चतुर्विष दान देवा सुपात्र । पर उपकार सफल करि गाव ।। धन कम रयण मागगन देय ! लोक सहू स्वर्गनि निदेय ।।३सा