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________________ १५८ अवन्ती देश वर्णन यशोधर राम दीसि दस दिश चरती फिरे । गोवाला सादि अनुसरें ॥ पूंछ उलालि पावि धसि । भवर कोहने न व्यथापि वसि ।।१२।। महिषी मोटी घरी छिवली भिस कुमामिनी भोला जीव गोवालिया सिर सोहि घूघटी। मयोर पीछनी मनोहर घड़ी ।। सोमें लाकड़ी हाथ उदार || १४ || गले लिलकि गुजानो हार फूल मुकुट सिर रह्यो लली गीत गायि नाखि मन रली । जल दीठि पोहोचि मन रली || सही पाती देखि हरषे प्रती ||१३|| मुख मधुरी वायि बांसली || सोभले हरण घणी हरणली ||१५|| बस नाद सुरगी डोलि सांप भूख तरसनो न लेखे व्याप ॥ विषय बलूधो जीव गमर । न व्यलेखं सुख दुःख विचार ।। १६ ।। पाली राति तीहा गोलणी । दीही बलो ं घूमे घणी ।। कंकण खलकि ललके गोफणो । कटि चालि मटको तेह तो ।।१७।। राते रच्यो जे काम विलास रखे बीसरू' जाणी करय अभ्यास || विलोरगां गंभिर सांभली साद । जारखे मेत्र तणो ते नाद ।। १८ ।। नाचे मोरडा रची कलाप | मेही मेहो शव्दह करि व्याप ।। बन महि मोरडी साथै रमे । जाणे प्राथ्यो बरखा समे ||१६|| साल क्षेत्र भर नमी रहि । स्थल कमल ऊय तेह महि ॥ हिलाबि सीस । परीमल जाणे वस्त्राणि ईस ||२०|| सूहा साद करें सोहामरगा । वनफल त्यजी तिहाँ भावि घाँ || बहु फूलत्पजी त्यहाँ समर भ्रमंत रामरण करता साल सेवंत ॥ २१॥ अवर धान्य तीहा नीजि घरां । परवत सम हम होमि सेह तया ॥ राखि कोय नही तेहनि । लेई जायि जोई िजेहनें ||२२|| ग्रीषमे कठरण कर सुरज तो । राजा कर न कठिण लिहाँ भरणो ।। नारी पयोधर करें पीडाय । नहीं गाम राय करिसी दाय || २३।। मिदं नव्यलोक दही यि । फूलें बंध व्यलोक बंधीयि ॥ नारी अधर कामी करें खंड || जीवह खंड नहीं परचंड ॥ २४ ॥ अवन राय सरणागत तणो । न कोई गाम वन पाखि भणो ॥ जीहा भला भमरा दीसिजपाट | नही लोक को हीटें कुवाट || २५ ।।
SR No.090071
Book TitleBai Ajitmati aur Uske Samkalin Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year1984
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size5 MB
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