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अवन्ती देश वर्णन
यशोधर राम
दीसि दस दिश चरती फिरे । गोवाला सादि अनुसरें ॥ पूंछ उलालि पावि धसि । भवर कोहने न व्यथापि वसि ।।१२।।
महिषी मोटी घरी छिवली भिस कुमामिनी भोला जीव गोवालिया सिर सोहि घूघटी। मयोर पीछनी मनोहर घड़ी ।। सोमें लाकड़ी हाथ उदार || १४ ||
गले लिलकि गुजानो हार
फूल मुकुट सिर रह्यो लली गीत गायि नाखि मन रली
।
जल दीठि पोहोचि मन रली || सही पाती देखि हरषे प्रती ||१३||
मुख मधुरी वायि बांसली ||
सोभले हरण घणी हरणली ||१५|| बस नाद सुरगी डोलि सांप भूख तरसनो न लेखे व्याप ॥ विषय बलूधो जीव गमर । न व्यलेखं सुख दुःख विचार ।। १६ ।।
पाली राति तीहा गोलणी । दीही बलो ं घूमे घणी ।। कंकण खलकि ललके गोफणो । कटि चालि मटको तेह तो ।।१७।।
राते रच्यो जे काम विलास रखे बीसरू' जाणी करय अभ्यास || विलोरगां गंभिर सांभली साद । जारखे मेत्र तणो ते नाद ।। १८ ।।
नाचे मोरडा रची कलाप | मेही मेहो शव्दह करि व्याप ।। बन महि मोरडी साथै रमे । जाणे प्राथ्यो बरखा समे ||१६||
साल क्षेत्र भर नमी रहि । स्थल कमल ऊय तेह महि ॥ हिलाबि सीस । परीमल जाणे वस्त्राणि ईस ||२०|| सूहा साद करें सोहामरगा । वनफल त्यजी तिहाँ भावि घाँ || बहु फूलत्पजी त्यहाँ समर भ्रमंत रामरण करता साल सेवंत ॥ २१॥ अवर धान्य तीहा नीजि घरां । परवत सम हम होमि सेह तया ॥ राखि कोय नही तेहनि । लेई जायि जोई िजेहनें ||२२||
ग्रीषमे कठरण कर सुरज तो । राजा कर न कठिण लिहाँ भरणो ।। नारी पयोधर करें पीडाय । नहीं गाम राय करिसी दाय || २३।।
मिदं नव्यलोक दही यि । फूलें बंध व्यलोक बंधीयि ॥ नारी अधर कामी करें खंड || जीवह खंड नहीं परचंड ॥ २४ ॥
अवन राय सरणागत तणो । न कोई गाम वन पाखि भणो ॥ जीहा भला भमरा दीसिजपाट | नही लोक को हीटें कुवाट || २५ ।।