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यशोधर रास
अभयरुचि एवं अभयमति का गुरु के पास पाना
ती समें ए मुनीवरे दीठ । अभयची प्रमयामती ए ।। माहां नहां ए नव दीक्षत । भूखे कोमलाणां प्रती ए ||१६॥ प्राणी प्रए करूणा भाव । वदय वचन सुदत्तगुरु ए ॥ तेंडीय ए दीयि पादेश । वछ यथा सुख तम्हे कारो ए ।।२०।। लागीयाए तेह गुरु पाय । काय स्थीती काज वालीयां ए॥ जोडली ए ब्रह्मचारी नेह । ईरीयापंथ नीहालीया ए ॥२१॥ तंगों समिए सेवके तह । ब्रह्मचारी युग देखीया ए ।। रूप ए मोहि अपार । वाम रती समलेखयां ए ।।२२।।
यगल को देखकर विभिन्म विचार
माहोमाहि ए । करयते वात । भ्रात यापणा घणा वम दल्याए । लक्षण ए रूप विक्षात पात काररिंग जोइता मल्या ए ॥२३।। पामसे ए देवी बल आज । काज राय तणं सीझसे ए॥ देखीयए युगम सरूप । भूप आपण प्रति रीझसे ए ।।२४।। सांभली ए किकर भास । भाषा कोमल अभय रूचीए । बोलीयो । बेहेनर साथ । हाय रास्त्रो मन करो सूची ए ॥२५॥ सह, गुरु ए का बहू पैर । परीसह जीको तप फल ए॥ तेह भगपीए घरीभ समाध । बाब त्यजी थाउ नीश्वलए ।।२६॥
संसार स्वरुप
जीवने ए ममतां संसार । पार रहित दुःख पनि ए । नरके ए शातें माहि । काहिं सुख नहि नीपजे ए ।।२७।। मूल तृषा ए पाहिए रीर । नीर अन्न रती नवि मल्योए ।। छेदें तनू ए नारकी पाप । बापडो जीवडो टलबत्योए ।।२८।। वनी भम्यो ए वार अनन्त तियं च गती जीवडो ए॥ यिहितो ए भार अपार । सार वहूरसो रखवडयो ए ।।२६।। मुखिए तरसे उ दुखी उदास । भास आनंद करि वलीए ।
छेदन ए भेदन माद । दु:स्य जाणे ते केवली ए ॥३०॥ १. अन्य रचमानों में ब्रह्मचारी के स्थान पर क्षुल्लक भुल्लिका पाय मिलता है।