SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 176
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १५२ यशोधर रास अभयरुचि एवं अभयमति का गुरु के पास पाना ती समें ए मुनीवरे दीठ । अभयची प्रमयामती ए ।। माहां नहां ए नव दीक्षत । भूखे कोमलाणां प्रती ए ||१६॥ प्राणी प्रए करूणा भाव । वदय वचन सुदत्तगुरु ए ॥ तेंडीय ए दीयि पादेश । वछ यथा सुख तम्हे कारो ए ।।२०।। लागीयाए तेह गुरु पाय । काय स्थीती काज वालीयां ए॥ जोडली ए ब्रह्मचारी नेह । ईरीयापंथ नीहालीया ए ॥२१॥ तंगों समिए सेवके तह । ब्रह्मचारी युग देखीया ए ।। रूप ए मोहि अपार । वाम रती समलेखयां ए ।।२२।। यगल को देखकर विभिन्म विचार माहोमाहि ए । करयते वात । भ्रात यापणा घणा वम दल्याए । लक्षण ए रूप विक्षात पात काररिंग जोइता मल्या ए ॥२३।। पामसे ए देवी बल आज । काज राय तणं सीझसे ए॥ देखीयए युगम सरूप । भूप आपण प्रति रीझसे ए ।।२४।। सांभली ए किकर भास । भाषा कोमल अभय रूचीए । बोलीयो । बेहेनर साथ । हाय रास्त्रो मन करो सूची ए ॥२५॥ सह, गुरु ए का बहू पैर । परीसह जीको तप फल ए॥ तेह भगपीए घरीभ समाध । बाब त्यजी थाउ नीश्वलए ।।२६॥ संसार स्वरुप जीवने ए ममतां संसार । पार रहित दुःख पनि ए । नरके ए शातें माहि । काहिं सुख नहि नीपजे ए ।।२७।। मूल तृषा ए पाहिए रीर । नीर अन्न रती नवि मल्योए ।। छेदें तनू ए नारकी पाप । बापडो जीवडो टलबत्योए ।।२८।। वनी भम्यो ए वार अनन्त तियं च गती जीवडो ए॥ यिहितो ए भार अपार । सार वहूरसो रखवडयो ए ।।२६।। मुखिए तरसे उ दुखी उदास । भास आनंद करि वलीए । छेदन ए भेदन माद । दु:स्य जाणे ते केवली ए ॥३०॥ १. अन्य रचमानों में ब्रह्मचारी के स्थान पर क्षुल्लक भुल्लिका पाय मिलता है।
SR No.090071
Book TitleBai Ajitmati aur Uske Samkalin Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year1984
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy