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यशोधर रास
दूहा
पांचसो ममियों के साथ सुबत्ताबारीका मागमा
पांचस मुनीदरें परवरची, वरभो संयम श्रीचंग ।। सुदत्ताधारण नाम तेह तणं, तप संय में अभंग ॥१॥ नगर समीपें प्रावीया, मुनिवर स्वामि सुजामा ।।
अनेक वृक्ष करी अलंकरपो, दीठो तब उखान ।।२।। बन को शोमा
प्रांबा ऊनत प्रति वनां, भोरचा तेहां अपार ।। कोएल कुहू कुहुका करें, सुरगतां काम बिकार ॥३।। मालती मंदार मोगरा, फूल तणा मकरंद ॥ गजता ममर भर्मि भला, वायू वाय प्रति मंद ।।४।। सेवती सोवन केतकी, पाडल परिमल पूर ।। वेलतणा पर पिर पिरह, करन पसारय सूर ।।५।। भूख दुखीयां दुःख पीसरि, सुखीमा होइ सुख भूर । हुइ व्यरहणी दुखि दूसरणी, बेह भरतारछि दूर ||६|| फूल पगर पसरयां घर , फलवसी पत्र ठाम ठाम ।। नीरतणनीझर तिहां, व्यापय विषयने काम ।।७।। ए मुनिनित गत्तं नहीं, इन बहूराग सचीत्त ।। प्रवर स्थानक नीहालवा, चास्या मुनी सुपवित्स ।।८।।
मास ब्रम्हगुणरामनी मशान वर्णन
से मुनीए । चालया जाम । ताम मसाण दीठो घणोए ।। मडो तिहां ए बलि अपार । रौद्र दीसि बीहामणो ए ।।१।। वीहायकाए । ऊठया बहु घुम । अर्घदग्ध कलेवर पडयां ए॥ ठाम ठाम ए पड्या बहुत । गली गयू मास एह्वां मडाए ॥२॥ विकसपाए । मुखदीसिदांत । हूबलीए घणी घणीरउ बडी ए ।। सीमालीयांए ताऐ सास । पाकासे गृध लेई उड़े ए ॥३।। कूतरा एव लगि अपार । बढता माहोमाहि हहडहिए ।। वायस एक रके बइठ । कागिरण घर्ण, कलगली रहिए ।।४।।