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________________ जाया करती थी तो लोग उसे पूर्णिमा का चन्द्र समझ कर भाकाश में देखने लगते थे। कवि के वैसे तो सभी वर्णन एक से एक बढ़ कर है लेकिन इनमें यशोधर की सनी अमृतमती के सौन्दयं एवं उसके विवाह का वर्णन बहुत अच्छा प्रा है । प्रत्येक रीतिरिवाज सीधनता है न किला ; वादात नी नहुरावणी होना एक महत्वपूर्ण रिवाज माना जाता है कवि ने लिखा है कि पहरावणी के लिये परिवार के सभी सदस्य एकत्रित हो गये हैं । राजा यशोधर अपनी रानी अमृतमती के रूप सौन्दर्य पर मुख था। रात्रि को जब वह प्रमृतमती के महल में गया तो उसका एक २ मंजिल पर जितना स्वागत हुप्रा कवि ने उसका बहुत सूक्ष्म वर्णन किया है उसने अपने जीवन में उसे अमृत के समान समझा। यशोमती रानी का बसन्त कीड़ा का वर्णन भी नया हमा है। इन सबके अतिरिक्त मुनि मुदत्ताचार्य दाग धर्मोपदेश का भी कवि ने १३६ पद्यों में वर्णन किया है। पूरा रास काम्य अधिकारों में विभक्त है जो किसी काव्य के लिये पर्याप्त कहे जा सकते हैं। इस भाग में परिमल्ल चौधरी के श्रीपाल चरित्र का एक भाग ही दिया जा सका है शेष सभी कवियों की सभी रचनामों के पूरे भाग इस में दिये गये हैं। यशोधर रास स्वयं ही एक काव्य है, इसके अतिरिक्त बाई अजीतमति की ह कृतियो, महेन्द्र कीर्ति के पूरे १५ पद एवं धनपाल के ४ गीत इस प्रकार ३० मूस कृतियों के पाठ भी दिये गमे हैं। सम्पादक मंडल : प्रस्तुत पुष्प के संपादक मंडल में माननीम डॉ० हीरालाल जी माहेश्वरी, • राजाराम जी जैन एवं डॉ० गंगाराम जी गर्ग हैं। डॉ० माहेश्वरी राजस्थान विश्वविद्यालय में हिन्दी विभाग में रोजर हैं। पाप राजस्थानी भाषा के जाने माने इतिहासज विद्वान एवं लेखक हैं । अकादमी पर प्रापकी विशेष कृपा रहती है प्रापने विद्वतापूर्व "दो शब्द" व्यक्तभ्या लिखने की जो कृपा की है उसके लिये हम उनके .. पत्यन्त माभारी है। डॉ० राजाराम जैन मगध विश्वविद्यालय के प्राकृत एवं अपभ्रश के प्रोफेसर है समाज प्रापकी बिंदता से चिरपरिचित है। इसी तरह डॉ. गंगाराम जी गर्ग युवा पीढ़ी के विद्वान् है । जैन साहित्य पर शोध कार्य प्रापकी बचि में शामिल है । पार्वदास निगोत्या पर प्रापने अच्छी खोज की है। तीनों ही विद्वानों के हम हृदय से आभारी हैं। अकादमी के संरक्षक श्री निर्मल कुमार जी सेठी ने "संरक्षक की प्रोर से को सन्द" लिखने की महती कृपा की है। सेठी साहब उदार व्यक्तित्व के धनी (xiii)
SR No.090071
Book TitleBai Ajitmati aur Uske Samkalin Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year1984
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size5 MB
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