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________________ थीपाल चरित्र कुकुम अरु कपूर बर गारि । चंदन लेइ पवित्त निहारि ।। अरु प्रखंड अक्षत बहु लेह । उज्जल पुज मनोहर देइ ।।१४४।। दर केनरी केतुकी माल । चंचेली अरु बेली गुलाल 11 चंपक जुही मालती मार। अवित्त सुगंध अंबुज मन्दार ॥१४५॥ नाना विधि के पहुप अपार । पूर्ज भरी अंजुरि सुभ सार ।। षटरस समेट गुभ जोड़ । बह पकवान चहावं सोइ ॥१४६।। कपूर दियौ तहां धरै प्रजारि । बहु क्रिस्नागर खेचे वारि ॥ नानाबिधि पाल पूजे भाउ । जल गंधाक्षत पहुप वनाउ ॥१४७।। नईवेद दीपक अरु धूप । सुदर फल तहां धर अनूप ।। देव अत्रं पूजे सुभ चित्त । सिच जंत्र पाराध नित्त ॥१४८।। पनि उजबन कर धरि भाउं । करी प्रतीच्या धर्म सहाउ । पूज्यो निमत्त प्राइक जब । संन्यासह तनु छाड्द्यो त ।।१४।। दोहा दिव्य देउ सुरगह भयो । मुज्यौ सुष अधिकार ॥ पाच मुक्ति च पाइयो, सो तू है श्रीपार ।।१५।। चोपई सुनि श्रीमती अनोवत पारि ! पहुती सुर्ग देह तजि नारि ॥ तहा ते च प्राइ गुन भरी। सोई है मैंनासुन्दरी ।।१५।। अरु ए देषि सात से अंग । पूरव मित्र जु रहते संग !! मुनिवर सौं त कुष्टी करो । तातै कुष्टी म्हं दुष सयौ ॥१५२।। ते मुनि जलवोरन उचरौ । ताल तू सागर मैं परयो ।। दयावन्तह्न काढयो सार । ताही ते तं पायौ पार ॥१५॥ जो त भिष्ट मिष्ट करि भयो । तातै भाड विगोवो भयो ।। असिवर सौ मुनि मारन कह्यो । तात त्रास महा ते सयौ ॥१५॥ पुन्य भवांतर सुनि हो दाई । दु:ष सुष यहै भ्रम छिट काय' 11 यह सुनि मुनि बंद्यौ श्रीपार । अत प्राचरयो सुष अधिकार 1१५५॥ उपवेश के बाद गृहागमन आदि अंत पूरव भव सरन । दुःष बिनासन सुभगति करन ।। बारंबार नबायो सीस । घर प्रापर्न गयो नर ईस ।।१५६!!
SR No.090071
Book TitleBai Ajitmati aur Uske Samkalin Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year1984
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size5 MB
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