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कहै मुनिदं सुनों श्रीपाल । इनते धर्म म धनिवार ॥ हरथ्यौ नृप इह सुनियों जब । पविच मुनिवर पूबै ॥ ६६ ॥
श्रीपाल द्वारा प्रश्न
भो ज्ञान दिवाकर परमगुरु, गुंन रत्नाकरि जांसि । हमें भवातर हैं जिसे तेसे कहो बषांनि ॥ ६मा
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चौप
श्रीपाल परित्र
कौन कर्म करि कोठि भयौं। क्यों में सिद्ध चक्र घृत लयो । क्यों हूं पर्यो समद में जाइ क्यौं भुजबल तिरयों निकुताइ ॥११॥ कहो कम्मं स्वामी मो तनौं । भांड विगोवों कीनों घनौं । बावन कर्म तेमिटियो सोहि । यह संसौ मेरै मन होहि ॥ ६२ ॥ मुनि द्वारा प्रश्न का उतर
यह सुनि मुनिवर जंप सबै सुनि श्रीपाल कम् निज सबै || भरत क्षेत्र सब सुबह निधन | जामै कोटिगम परधांन ||१३||
तामै रत्न कंपापुर जांनि । वन उपवन करि सोभित मांनि ॥ जह श्रीकेतराज बलि बंड । विद्याधर सोहि प्रचंड ॥६४॥ विद्या जानें प्रति चतुरंग । कुल जल ल्ह सारंग प्रसंग || अंतेवर मैं परमान ॥६५॥ अह निसि पिय मन रंजन करन रूपवंति सोभति मति हरन ।। जैन धरम पालन परबीन । पात्रहि दान भक्ति प्रति लीन ॥१६॥
तसु भामा श्रीमती सुजांन सब
वह दिन नृप ताहि समान गर्यो जिन मन्दिर मन कल्याण || महामुनिस्वर बंधी जाइ । फिर ताढिग बैठ्यो सुष पाइ ॥६७॥
मुनि सु प्रसंन भयो तिहार । लाग्यो भाषन धर्म विचार ॥ पुन्य पाप जैसी फलु चाहि । को प्रगट राजा सौ चाहि ॥ ६८ ॥
सुनि नृप मन हरष्यो जोनि । जैमी सुनिवर कही वषांनि ॥ प्रानंची राजा घर गयी। जैन धरम पारं सुष भयो ॥६२॥
बहु अशुभ उदे भयो भाइ | श्रावक व्रत दीए छिटकार ।। जोवन मद श्रीमद भयौ राज भयो बिकल को कहे बहाइ ॥ १०० ॥