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आत्मानुशासनम्
महिलायें तीर्थंकर, चक्रवर्ती, नारायण, बलदेव और गणधर जैसे पुरुष रत्नोंको उत्पन्न करनेवाली हैं १ ।
आत्मानुशासन और समन्तभद्र - साहित्य
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प्रस्तुत ग्रन्थके ऊपर समन्तभद्राचार्य के ग्रन्थोंका भी प्रभाव दृष्टिगोचर होता है। जैसे-
श्लोक ५८ में संसारके स्वरूपको दिखलाते हुए बतलाया है कि प्राणीको मृत्युसे भय रहता है, परन्तु वह निरन्तर होती अवश्य है ( मृतेः प्रतिभयं शरवन्मृतिश्च ध्रुवम् ) । इसदर स्वयंभू स्तोत्रके निम्न पद्य (३४) का प्रभाव स्पष्ट दिखता है-
बिभेति मृत्योर्न ततोऽस्ति मोक्षो नित्यं शिवं वाञ्छति नास्य लाभः । तथापि बालो भय - कामवश्यो वृथा स्वयं तप्यत इत्यवादीः ॥
श्लोक १०७ में भव्य जीवको प्रेरणा देते हुए यह कहा है कि तू दया, दम, त्याग एवं समाधिके मार्गमें- जैन मतमें- जानेका सरलतापूर्वक प्रयत्न कर । इससे तू अनिर्वचनीय एवं निर्विकल्प उस परम पदको अवश्य पा लेगा । यहां 'दयादमत्यागसमाधिसंततेः ' का आधार युक्त्यनुशासनका निम्न श्लोक रहा है-
दयादमत्यागसमाधिनिष्ठं नयप्रमाणप्रकृताञ्जसार्थम् । अधृष्यमन्यैरखिलैः प्रवादैर्जिन त्वदीयं मतमद्वितीयम् ॥ ६ ॥
१. महिलाणं जे दोसा ते पुरिसाणं पि हुंति णीचाणं । तत्तो अहिवरा वा तसि बल- सत्तिजुत्ताणं ।। जह सीलरक्खयाणं पुरिसाणं णिदिंदाओ महिलाओ । तह सीलरक्खयाणं महिलाणं णिदिदा पुरिसा ॥ किं पुण गुणसहिदाओ इत्थीओ अस्थि वित्थडजसाओ । णरलोगदेवदाओ देवेहि वि वंदणिज्जाओ || तित्थयर- चक्कधर - बासुदेव - बलदेव - गणधरवराणं । जणीओ महिलाओ सुर-णरवरेहिं महियाओ ॥ म. ९९३-९६. इस प्रकार उनकी प्रशंसा वहां आगे भी गा. १००२ तक की गई है।