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प्रस्तावना
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अन्य स्त्रीको ग्रहण नहीं किया था। प्रत्युत इसके वे हिमालयके शिखरपर बैठकर किसी फल की इच्छासे वहां तप करने लगे थे। उस समय हिमालयने जलादिसे उनकी स्वयं पूजा को तथा उनकी आराधनाके लिये जया
और विजया सखियोंके साथ अपनी पुत्री पार्वतीको भी आज्ञा दी। यद्यपि स्त्री तपमें विघ्नकारक मानी जाती है, किन्तु फिर भी महादेवने उसे शुश्रूषाकी अनुमति दे दी। तब वह वेदीको झाड-बुहारकर पूजाके लिये पुष्प एवं जलादि सामग्रीको लाती हुई प्रतिदिन महादेवकी शुश्रूषा करने लगी।
इसी समय वज्रणख के पुत्र तारक नामके असुरने देवोंको पीडित किया। इससे वे इन्द्रको आगे करके ब्रह्मलोकमें गये । वहां जाकर उन सबने ब्रह्माजीकी स्तुति की। उससे प्रसन्न होते हुएं ब्रह्मदेवने उनके कान्तिहीन मुख आदिको देखकर आनेका कारण पूछा। तब इन्द्रका संकेत पाकर बृहस्पतिने निवेदन किया कि प्रभो! आप अन्तर्यामी होकर सब कुछ जानते हैं। आपका वर पाकर महान् असुर तारक हम लोगोंको बहुत पीडा दे रहा है । उसके प्रतीकारके लिये हम लोगोंने कितने ही प्रयत्न किये, किन्तु वे सब व्यर्थ हुए। अतएव हम किसी ऐसे सेनानीकी सृष्टि चाहते हैं जिसके बलपर हम विजय प्राप्त कर सकें । इसपर ब्रह्मदेवने कहा कि तुम्हारा मनोरथ पूर्ण होगा, किन्तु इसके लिये कुछ कालकी प्रताक्षा करनी पडेगी। चंकि मैंने उसे वर दिया है, अतः उसको नष्ट करनेके लिये मैं स्वयं सेनानीको उत्पन्न न करूंगा। महादेवके वीर्यांशके विना उक्त असुरका पराभव करनेके लिये अन्य कोई भी समर्थ नहीं है । इसलिये तुम पार्वतीक सौन्दर्यद्वारा उनके मनको विचलित करनेका प्रयत्न करो। तदनुसार इन्द्रने इसके लिये कामदेवको नियुक्त किया। तब कामदेव रतिके साथ जाकर वसन्त आदिकी रचना करते हुए उनके मनको आकृष्ट करनेका प्रयत्न करने लगा। इस बीच पार्वती पूजासामग्री लेकर महादेवके पास पहुंची। उसने उन्हें अपने हाथसे पद्मबीजोंकी जपमाला दी । इसी समय वह कामदेव अपने धनुष्यके ऊपर संमोहन नामक बाणको रखकर उसके छोडनेमें उद्यत हुआ । उसको महादेवने देख लिया । इससे उन्हें उसके ऊपर बहुत क्रोध हुआ। तब उनके तृतीय नेत्रसे जो अग्निकी ज्वाला प्रगट