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आत्मानुशासनम्
श्लो० २२
छद्माल्पं छद्म माया । अल्पमपि तत् छद्म। विषमिव दूषणकं भवति॥२२०॥भयमित्यादि
वह वृत्तान्त महाभारत (द्रोण पर्व अध्याय १९०-९२) में इस प्रकार पाया जाता है-महाभारत युद्ध में जब पाण्डव द्रोणा वार्यके बाणोंसें बहुत त्रस्त हो गये थे और उन्हें जयकी आशा नहीं रही थी तब उन्हें पीडित देखकर कृष्ण अर्जुनसे बोले कि द्रोणाचार्यको संग्राममें इन्द्र के साथ देव भी नहीं जीत सकते हैं। उन्हें युद्ध में मनुष्य तब ही जीत सकते जब कि वे शस्त्रसंन्यास ले लें। इसके लिये हे पाण्डवो ! धर्मको छोडकर कोई उपाय करना चाहिये । मेरी समझसे अश्वत्थामाके मर जानेपर वे युद्ध न करेंगे और इस प्रकारसे तुम सबकी रक्षा हो सकती है । इसके लिय कोई मनुष्य युद्धमें उनसे अश्वत्थामाके मरनेका वृत्तान्त कहे । यह कृष्णकी सम्मति अर्जुनको नहीं रुचो,युधिष्ठिरको वह कष्टके साथ रुची, परंतु अन्य सबको वह खूब रुची । तब भीमने मालव इन्द्रवर्मा के अश्वत्थामा नामक भयंकर हाथीको अपनी गदाके प्रहारसे मार डाला और युद्धमें द्रोणाचार्य के सामने जाकर अश्वत्थामा हतः- अश्वत्थामा मर गया' इस वाक्यका जोरसे उच्चारण किया। उस समय चूंकि अश्वत्थामा नामका हाथी मर ही गया था, अतः ऐसा मनमें सोचकर भोमने यह मिथ्या भाषण किया। इस वाक्यको सुनकर यद्यपि द्रोणाचार्यको खेद तो बहुत हुआ फिर भी अपने पुत्रके पराक्रमको देखते हुए उस वाक्यके विषयमें संदिग्ध होकर उन्होंने धैर्यको नहीं छोडा। उस समय उन्होंने धृष्टद्युम्नके ऊपर तीक्ष्ण बाणोंकी वर्षा की । यह देखकर बीस हजार पंचालोंने युद्ध में उन्हें बाणोंसे ऐसा व्याप्त कर दिया जैसे कि वर्षा ऋतुमें मेघोंसे सूर्य व्याप्त हो जाता है । तब द्रोणाचार्यने क्रोधित होकर उन सबके बधके लिये ब्रह्म अस्त्र उत्पन्न किया और उन हजारों सुभटोंके साथ दस