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-५९] शरीरं कारागारम्
५९ अस्थिस्थूलतुलाकलापघटितं नद्धं शिरास्नायुभिश्चर्माच्छादितमस्रसान्द्रपिशितलिप्तं सुगुप्तं खलः । कर्मारातिभिरायुरुद्घनिगलालग्नं शरीरालयं
कारागारमवैहि ते हतमते प्रीतिं वृथा मा कृथाः ॥ ५९॥ अस्थीत्यादि। अस्थीनि एव स्यूलतुलाः तासां कलापः संघातः तेन घटितम् । नद्धं बद्धम् । सिरास्नायुभिः सिरा: प्रसिद्धाः, स्नायुः नहारुः । चर्माच्छादितं चर्मणा आच्छादितं झंपितम् । अस्रसान्द्रपिशितः अस्रेण रक्तेन सान्द्राणि तानि च तानि पिशितानि च मांसानि तै: लिप्तम् । सुगुप्तं सुष्ठु रक्षितम् । आयुरुद्घनिगलालग्नं आयुरेव उद्घो महान् निगल: आलग्नो यत्र । इत्थंभूतं शरीरालयं शरीरगृहम् । कारागारं ते बन्दिगृहं तव ॥ ५९॥ शरीराद्डरता है, पर उससे उसे छुटकारा नहीं मिलता। वह सदा कल्याणकी इच्छा करता है, परन्तु उसका उसे लाभ नहीं होता। फिर भी वह अज्ञानी प्राणी मृत्युके भय और काम (सुखको इच्छा) के वशीभूत होकर स्वयं ही व्यर्थमें संतप्त हो रहा है । बृ. स्व. ३४. इस प्रकारसे वह प्राणी शरीरको धारण करके उसके सम्बन्धसे संसारमें उपर्युक्त दुःखोंको
सहता है, तो भी वह उसी संसारमें रमण करता है, यह महान् आश्चर्यको • बात है ॥५८।। हे नष्टबुद्धि प्राणी! हड्डियोंरूप स्थूल लकडियोंके समूहसे
रचित, सिराओं और नसोंसे सम्बद्ध, चमडासे ढका हुआ, रुधिर एवं सघन मांससे लिप्त, दुष्ट कर्मोरूप शत्रुओंसे रक्षित, तथा आयुरूप भारी सांकलसे संलग्न; ऐसे इस शरीररूप गृहको तू अपना कारागार (बन्दीगृह) समझकर उसके विषयमें व्यर्थ अनुराग मत कर॥ विशेषार्थ- यहां शरीरमें गृहका आरोप करते हुए उसे बन्दीगृहके समान बतला कर उसमें अनुराग न रखनेकी प्रेरणा की गई है । बन्दीगृहसे समानता बतलानेका कारण यह है कि जिस प्रकार बन्दीगृह लकडीके खम्मो आदिसे निर्मित होता है उसी प्रकार यह शरीर भी हड्डियोंसे निर्मित है, बन्दीगृह यदि रस्सियोंसे बंधा होता है तो यह शरीर भी नसोंसे सम्बद्ध है, बन्दीगृह जहां छत अथवा कबेलू आदिसे आच्छादित होता है वहां यह शरीर चमडेसे आच्छादित है, दन्दोगृह जिस प्रकार गोबर एवं मिट्टी आदिस