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________________ आराधनासमुच्चयम् ३९ इन परिणामों से स्थितिबंधापसरण और स्थितिकाण्डकोत्करण भी होते हैं। इसमें कथित अपूर्व विशेषण से अधःप्रवृत्त परिणामों का निराकरण किया गया है क्योंकि जिन परिणामों में उपरितन समयवर्ती जीवों के परिणाम अधस्तन समयवर्ती जीवों के परिणामों के सदृश भी होते हैं और विसदृश भी होते हैं, ऐसे वृत्त में होने वाले परिणामों में अपूर्वता नहीं होती, क्योंकि ऊपरऊपर के समयों में नियम से अनन्तगुण विशुद्ध विसदृश परिणाम होते हैं, वही परिणाम अपूर्व कहलाते हैं। इस करण में प्रथम समय की विशुद्धि से दूसरे समय की विशुद्धि असंख्यात लोक प्रमाण अधिक होती है, इसी प्रकार द्वितीयादि समय से लेकर अन्त तक जानना चाहिए। अनिवृत्तिकरण का लक्षण समान समयवर्त्ती जीवों के परिणामों की भेदरहित वृत्ति को निवृत्ति कहते हैं अथवा निवृत्ति शब्द का अर्थ व्यावृत्ति भी है। अतएव जिन परिणामों की निवृत्ति अर्थात् व्यावृत्ति नहीं होती (जो छूटते नहीं) उन्हें ही अनिवृत्ति कहते हैं। अन्तर्मुहूर्त मात्र अनिवृत्तिकरण के काल में से किसी एक समय में रहने वाले अनेक जीवों में जिस प्रकार शरीर के आकार, वर्ण आदि बाह्यरूप से और ज्ञानोपयोग आदि अंतरंग रूप से परस्पर भेद पाया जाता है, उस प्रकार उनमें परिणामों के द्वारा भेद नहीं पाया जाता है, उनको अनिवृत्तिकरण परिणाम वाले कहते हैं और उनके प्रत्येक समय में उत्तरोत्तर अनन्त गुणी विशुद्धि से बढ़ते हुए समान वृद्धि वाले परिणाम पाये जाते हैं। इस करण में एक-एक समय के प्रति एक एक ही परिणाम होते हैं, क्योंकि इस अनिवृत्तिकरण मैं एक समय में होने वाले जघन्य और उत्कृष्ट भेदों का अभाव है। करण में प्रत्येक समय में परिणामों की विशुद्धि अधिक अधिकतर होती है अर्थात् प्रथम समय सम्बन्धी विशुद्धि अल्प है। उससे द्वितीय समय सम्बन्धी विशुद्धि अनन्तगुणित है। उससे तृतीय समय सम्बन्धी विशुद्धि अजघन्योत्कृष्ट अनन्तगुणित है। इस प्रकार यह क्रम अनिवृत्तिकरणकाल के अन्तिम समय तक जानना चाहिए। जिस प्रकार लोकपूरण समुद्घात में स्थित केवलियों के योग की समानता का प्रतिपादक आगम है, उस प्रकार अनिवृत्तिकरण में योग की समानता का प्रतिपादक आगम नहीं है। अतः अनिवृत्तिकरण के एक समय में स्थित सम्पूर्ण जीवों के योग की सदृशता का नियम नहीं है। इस करण में जब योगों की सदृशता नहीं है, तब प्रदेशबंध भी सदृश नहीं है क्योंकि प्रदेशबंध योग के निमित्त से ही होता है । अनिवृत्तिकरण परिणामों के द्वारा स्थितिखण्ड अनुभाग, स्थितिकाण्डघात, अनुभागकाण्डघात, स्थितिबंधापसरण, गुणसंक्रमण, गुणश्रेणीनिर्जरा आदि अनेक कार्य होते हैं।
SR No.090058
Book TitleAradhanasamucchayam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavichandramuni, Suparshvamati Mataji
PublisherDigambar Jain Madhyalok Shodh Sansthan
Publication Year
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, & Religion
File Size10 MB
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