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________________ भाराधनासमुच्चयम. 367 श्लोक संख्या पृ. सं. | श्लोक सख्या पृ. से. 146 38 248 233 154 361 297 216 216 78 88 218 239 153 216 529 149 195 205 216 203 169 229 165 235 126 65 विविधसुखदुःखकारण वृक्षस्य यथा मूल वेदकसम्यग्दृष्टिः व्यापदि यत् क्रियते तत् व्रतसमितिगुप्तिसंयमव्रतसमितिगुप्तिसंयमव्रतसमितिगुप्तिसंयमशक्कादिदोषसंकुलशान्तकषाये प्रथम शिष्यानुग्रहनिग्रहशीलेशितामुपेतो शुचिसुरभिपूतजलशुद्धनयाविज्ञानं शुद्धाशुद्धचरित्रैशुद्धाशुद्धनयद्यशुद्ध वा मिश्रं वा शेषेन्द्रियावबोधात् श्रीरविचन्द्रमुनीन्द्रः षट्सु अध: पृथ्वीषु षोडशकपञ्चविंशति स द्विविधः सागारो सप्ताधो नरकाः स्युः सप्ताष्टषोडशैकैक स पृथक्त्ववितकन्वितसम्यग्दर्शनबोधनसम्यग्दर्शनचिह्न सम्यग्दर्शनभाजा 87 213 सम्यग्दृशि देशयतौ सम्यग्दृशोऽप्यविरतसर्वत्र जगत्क्षेत्रे सर्वप्रकृतिस्थित्यनु सर्वावधिविज्ञान 281 सर्वेऽपि पुद्गलाः 331 सामान्यविशेषात्मक२९९ सावद्ययोगविरतिः 270 सासादनस्य नरकेषु 271 सूक्ष्मीकृते तु लोभ२६८ सैकद्विषोडश संख्येयाक्षरजनितं संघातादिज्ञाना संयममाराघयता 298 संयमविनाशभीरु संवरहेतु: सम्यम् 74 संसारवारिराशेः 363 सिंहगजवृषभमृगपशु स्त्रीपश्वादिविवर्जित स्यात्सुप्रतिष्ठकाकृति 261 - स्युः क्षान्तिमार्दवार्जव 221 स्वध्ययनमागमस्य स्वपरव्यापृतिरहितं 265 / स्वपरसमयागमानां 1 स्वर्गो दुर्ग वजं स्तेष्टवियोगादौ सति हिंसादीनां बाह्ये 296 230 91 178 15 257 256 252 221 108 170 221 262 125 187 160 128 199 189 114 105 219 181 167 289 211 188 141 118 120 227 190 251 उत्पद्यतेऽथ मिथ्या तत्त्वज्ञानमुदासीनतत्सराग विरागं च बुद्धितवो वि य लद्धी 卐 उद्धृतपद्यानां सूची ) 75*1 | रसाद रक्तं ततो मांसं 20461 269 / लांतवकमे तेरस 10*1 वातं पित्तं तथा 246*1 349 167*1 25*1 167182 28 / 252
SR No.090058
Book TitleAradhanasamucchayam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavichandramuni, Suparshvamati Mataji
PublisherDigambar Jain Madhyalok Shodh Sansthan
Publication Year
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, & Religion
File Size10 MB
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