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________________ आराधनासमुच्चयम् ३५० क्षयोपशम होने से विशुद्ध परिणामों के धारी किसी महर्षि को बीजबुद्धि प्राप्त होती है। जो संख्यात स्वरूप शब्दों के बीच में से लिंग सहित एक ही बीजभूत पद को पर के उपदेश से प्राप्त करके उस पद के आश्रय से सम्पूर्ण श्रुत को विचार कर के ग्रहण करती है, वह बीजबुद्धि है। बीज समान होने से बीज कही जाती है, जैसे बीज मूल, अंकुर, पत्र, पोर, स्कन्ध, प्रसव, तुष, कुसुम, क्षीर और तन्दुल आदि का आधार है, उसी प्रकार बारह अंगों के अर्थ का आधारभूत जो पद है, वह बीज तुल्य होने से बीज कहलाता है। बीजपद विषयक मतिज्ञान भी कार्य में कारण के उपचार से बीज है अर्थात् १२ अंगों के अर्थ को जानने का आधार की गति है। यह नीबुद्धि विशिष्ट अवग्रहावरणीय कर्म के क्षयोपशम से होती है। यह बीज बुद्धि संख्यात शब्दों के अनन्त अर्थो से सम्बद्ध अनन्त लिंगों के साथ बीज पद को जानने वाली है। __ कोष्ठबुद्धि ऋद्धि - उत्कृष्ट धारणा से युक्त जो कोई पुरुष गुरु के उपदेश से नाना प्रकार के ग्रन्थों में से विस्तार पूर्वक लिंग सहित शब्द रूप बीजों को अपनी बुद्धि में ग्रहण करके उन्हें मिश्रण के बिना बुद्धि रूपी कोठे में धारण करता है, उसकी बुद्धि कोष्ठबुद्धि कही जाती है। जैसे शालि, ब्रीहि, जौ, गेहूँ आदि के आधारभूत कोथली, पल्ली आदि का नाम कोष्ठ है, उसी प्रकार समस्त द्रव्य, पर्याय और गुणों को धारण करने वाली बुद्धि कोष्ठ के समान होने से इसको भी कोष्ठबुद्धि कहते हैं। इसका अर्थधारणा काल जघन्य से संख्यात वर्ष और उत्कृष्ट से असंख्यात वर्ष है क्योंकि संख्यात वा असंख्यात वर्ष तक धारणा रह सकती है अर्थात् धारणावरणीय ज्ञानावरण कर्म के तीव्र क्षयोपशम से, बीजबुद्धि के द्वारा ज्ञात पदार्थों को असंख्यात वर्षों तक नहीं भूलना, ज्ञान में स्थित रखना कोष्ठबुद्धि है। पद का जो अनुसरण या अनुकरण करती है, वह पदानुसारी बुद्धि है। बीजबुद्धि से बीजपद को जानकर, यहाँ यह इन अक्षरों का लिंग होता है और इनका नहीं, इस प्रकार विचार कर समस्त श्रुत के अक्षर पदों को जानने वाली पदानुसारी बुद्धि है (उन पदों से उत्पन्न होने वाला ज्ञान श्रुतज्ञान है, वह अक्षरपदविषयक नहीं है, क्योंकि उन अक्षरों-पदों का बीजपद में अन्तर्भाव है। ईहावरणीय कर्म के तीव्र क्षयोपशम से होती है।) विचक्षण पुरुषों ने पदानुसारिणी बुद्धि को अनुसारणी, प्रतिसारणी और उभयसारणी के भेद से तीन प्रकार का कहा है, इस बुद्धि के ये यथार्थ नाम हैं। जो बुद्धि आदि, मध्य अथवा अन्त में गुरु के उपदेशा से एक बीजपद को ग्रहण करके उपरिम (अर्थात् उससे आगे के) ग्रन्थ को ग्रहण करती है, वह 'अनुसारिणी' बुद्धि कहलाती है। गुरु के उपदेश से आदि, मध्य अथवा अन्त में एक बीजपद को ग्रहण करके जो बुद्धि अधस्तन (पीछे वाले) ग्रन्थ को जानती है, वह 'प्रतिसारिणी' बुद्धि है। जो बुद्धि नियम अथवा अनियम से एक बीजशब्द के (ग्रहण करने पर) उपरिम और अधस्तन (अर्थात् उस पद के आगे व पीछे के सर्व) ग्रन्थ को एक साथ जानती है, वह 'उभयसारिणी' बुद्धि है।
SR No.090058
Book TitleAradhanasamucchayam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavichandramuni, Suparshvamati Mataji
PublisherDigambar Jain Madhyalok Shodh Sansthan
Publication Year
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, & Religion
File Size10 MB
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