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आराथनासमुच्चयम् . ३४९
__इन्द्रपद, चक्रवर्ती पद, नारायण पद, आदि अनेक प्रकार के सांसारिक वैभव अभ्युदय कहलाते हैं, इन अभ्युदयों की प्राप्ति चारित्र के बल पर ही होती है।
बुद्धि ऋद्धि, तपर्द्धि, विक्रियर्द्धि, औषधर्द्धि, रसर्द्धि, बलर्द्धि और अक्षीणद्धि ये ऋद्धियाँ भी चारित्राराधना के कारण से उत्पन्न होती हैं, अतः ये चारित्राराधना का अमुख्य फल हैं। कहा भी है -
बुद्धितवो वि य लद्धी विउवणलद्धी तहेव ओसहिया।
रसबलअक्खीणा वि य लद्धीओ सत्त पण्णत्ता॥ बुद्धि लब्धेि, तपलब्धि, विक्रियालब्धि, औषधिलब्धि, रसलब्धि, बललब्धि और अक्षीणलब्धि ये सात लब्धियाँ कही हैं।
अन्य ग्रन्थों में आठ ऋद्धियाँ कही हैं, यहाँ पर सात ऋद्धियाँ कही हैं। विक्रियर्द्धि और चारण ऋद्धि का भेदरूप कथन नहीं करने पर सात ऋद्धियाँ होती हैं।
तपश्चरण के प्रभाव से कदाचित् किन्हीं योगिजन को कुछ चामत्कारिक शक्तियाँ प्राप्त हो जाती हैं, उन्हें ऋद्धि कहते हैं। यद्यपि ऋद्धियाँ अनेक प्रकार की हैं तथा आचार्यदेव ने मूल में सात प्रकार की वा किन्हीं अन्य आचार्यों के मतानुसार आठ प्रकार की ऋद्धियाँ होती हैं और उनके उत्तर भेद ६४ (चौंसठ) हैं। बुद्धि ऋद्धि के अठारह भेद हैं, वे इस प्रकार हैं -
__ अवाय, व्यवसाय, बुद्धि, विज्ञप्ति, आमुण्डा और प्रत्यामुण्डा ये बुद्धि के पर्यायवाची नाम हैं अर्थात् जिसके द्वारा अभिहित अर्थ 'बुद्ध्यते' जाना जाता है, वह बुद्धि है।
बुद्धि का अर्थ ज्ञान है। बुद्धि, उपलब्धि और ज्ञान इनका एक ही अर्थ है। उस बुद्धि की उपलब्धि बुद्धि ऋद्धि है।
केवलज्ञान ऋद्धि - ज्ञानावरण कर्म के सर्वथा क्षय से उत्पन्न असहाय, त्रैकालिक एवं तीन लोक में स्थित सर्व पदार्थों को एक साथ जानना केवलज्ञान ऋद्धि है।
मनःपर्ययज्ञान ऋद्धि - मन:पर्यय ज्ञानावरण के क्षयोपशम से उत्पन्न दूसरों के मन की बात को जानने वाला ज्ञान।
अवधिज्ञान ऋद्धि - अवधि ज्ञानावरण के क्षयोपशम से उत्पन्न द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव की मर्यादा से रूपी पदार्थों को जानने वाला ज्ञान।
बीजबुद्धि ऋद्धि - नोइन्द्रियावरण, श्रुतज्ञानावरण और वीर्यान्तराय इन तीन प्रकृतियों का उत्कृष्ट