________________
आराधनासमुच्चयम् ३४७
अर्थ - सम्यग्दर्शन की आराधना करने वाला प्राणी एकेन्द्रिय, दो इन्द्रिय, तीन इन्द्रिय, चार इन्द्रिय, असंज्ञी पंचेन्द्रिय नहीं होता। मिथ्यात्व अवस्था में नरकायु वा तिर्यंच आयु का बन्ध कर लिया हो, तदनन्तर क्षायिक सम्यग्दर्शन प्राप्त किया हो, ऐसे जीव प्रथम नरक में और भोगभूमिया तिर्यंचों में उत्पन्न हो सकते हैं; अन्यथा सम्यग्दृष्टि नरक और तिर्यञ्चों में उत्पन्न नहीं होते हैं।
__सर्व प्रकार की स्त्रियों में, भवनवासी, व्यंतर, ज्योतिषियों में, नीच कुल में उत्पन्न नहीं होते हैं। वे विकलांग नहीं होते हैं। वर्तमान में उनके ४१ कर्मप्रकृतियों का बन्ध नहीं होता है। यह सम्यग्दर्शनाराधना का अमुख्य फल है।
सम्यग्दृष्टि स्वर्गों में उत्पन्न होते हैं, उनको चक्रवर्ती पद प्राप्त होता है और अनेक प्रकार के सांसारिक सुख प्राप्त होते हैं, यह भी अमुख्य फल है।
सम्पूर्ण पाप प्रकृतियों के समूह का नाश करने वाली अचल तत्त्व रुचि रूप क्षायिक सम्यक्त्व की प्राप्ति होना ही सम्यक्त्व आराधना का मुख्य फल विद्वज्जनों को इष्ट है अर्थात् दर्शनाराधना का मुख्य फल क्षायिक सम्यक्त्व की प्राप्ति है।
जैन ग्रन्थों में जो सम्यग्दर्शन की महिमा लिखी है, वही सम्यग्दर्शन आराधना का फल है। सम्यग्दर्शन के प्रभाव से जो सांसारिक अभ्युदय प्राप्त होता है, वह अमुख्य फल है और कर्मास्रव का निरोध एवं क्षायिक सम्यग्दर्शन की प्राप्ति एवं कर्मों की असंख्यात गुणी निर्जरा होती है, वह मुख्य फल है।
ज्ञानाराधना का फल
अज्ञानस्य विनाशनमवधिमन:पर्ययादिसंज्ञानो- । त्पत्तिश्चामुख्यफलं तद्ज्ञानाराधनोद्भूतम् ।।२४४।। क्रमकरणव्यवधानापेतस्त्रैकाल्यवर्त्ति विश्वार्थ- ।
द्योती केवलबोधो मुख्यफलं तत्र भवति भृशम् ।।२४५।। अन्वयार्थ - तद्ज्ञानाराधनोद्भूतम् - उस ज्ञान आराधना से उत्पन्न । अमुख्यफलं - अमुख्य फल। अज्ञानस्य विनाशनं - अज्ञान का विनाश | च - और। अवधिमनःपर्ययादिसंज्ञानोत्पत्ति: - अवधिज्ञान, मन:पर्यय आदि सम्यग्ज्ञानों की उत्पत्ति है। च - और। तत्र - इस सम्यग्ज्ञान की आराधना में। मुख्यफलं - मुख्यफल। क्रमकरणव्यवधानापेत: - क्रम और इन्द्रियों के व्यवधान से रहित। त्रैकाल्यवर्ती विश्वार्थधोती - त्रिकालवर्ती सारे पदार्थों को प्रकाशित करने वाला। केवलबोध: - केवलज्ञान। भृशं - शीघ्र ही। भवति - होता है।॥३५॥
अर्थ - अक्षर आदि शुद्ध पढ़कर जो ज्ञान की आराधना करते हैं अर्थात् आठ अंग सहित शास्त्र आदि का पठन-पाठन करते हैं वह ज्ञान आराधना है। उस ज्ञान आराधना का अमुख्य फल है - अवधिज्ञान