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________________ आराधनासमुच्चयम् २४६ में चार दिशाओं में आठ-आठ कूट हैं, जिन पर माता की सेवा करने वाली ३२ दिव्यकुमारियाँ रहती हैं। उनके बीच की विदिशाओं में दो-दो करके आठ कूट हैं जिन पर भगवान का जातकर्म करने वाली आठ महत्तरियाँ रहती हैं। इनके अभ्यंतर भाग में पुन: पूर्वादि दिशाओं में चार कूट हैं जिन पर दिशाएँ निर्मल करने वाली देवियों रहती हैं। इनके अभ्यंतर भाग में चार सिद्धकूट हैं। अंतिम द्वीप स्वयम्भू रमण है। इसके मध्य में कुंडलाकार स्वयंप्रभ पर्वत है। इस पर्वत के अभ्यंतर भाग तक तिर्यंच नहीं होते, पर उसके पर भाग से लेकर अंतिम स्वयम्भूरमण सागर के अंतिम किनारे तक सब प्रकार के तिर्यंच पाए जाते हैं। इस प्रकार मध्यलोक में असंख्यात द्वीप समुद्र हैं। एक लाख योजन ऊँचा एक राजू चौड़ा सात राजू लम्बा मध्य लोक है, जिसका संक्षेप में यहाँ वर्णन किया है। संस्थान विचय नामक ध्यान में मध्यलोक का चिंतन कर मेरी आमा ने किस स्थान में जन्म लिया, फैसा दुःख भोग ऐसा ध्यान करना चाहिए। इस मध्य लोक वा तिर्यग् लोक में यह संसारी आत्मा एकेन्द्रिय, दो इन्द्रिय, तीन इन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय, असैनी पंचेन्द्रिय, सैनी पंचेन्द्रिय, पर्याप्त, अपर्याप्त आदि योनियों में जन्म-मरण के दुःखों को भोगते हुए अनन्त काल व्यतीत किया है। इस संसार में पापकर्म के उदय से यह प्राणी अनेक दुःख भोगता रहता है। यदि किसी पुण्य के उदय से इस तिर्यग् लोक में मानवभव को प्राप्त किया तो इष्ट वियोग, अनिष्ट संयोग, शारीरिक, मानसिक आदि अनेक दुःखों को भोगता है। यदि पुण्य के उदय से चक्रवर्ती पद, नारायण पद, प्रतिनारायण पद, कामदेव पद आदि अनेक प्रकार के अभ्युदयों की प्राप्ति होती है तो भी निराकुलता नहीं मिलती है, आकुलता बनी रहती है। अत: मध्यलोक में भी कहीं सुख नहीं है। यदि किसी पुण्योदय से स्वर्ग सम्पदा भी प्राप्त हो गई तो वहाँ पर भी सुख नहीं है। प्रश्न - स्वर्ग कहाँ है इस लोक में ? उत्तर - तीन सौ तैंतालीस राजू प्रमाण लोक के अधोभाग रूप सात राजू प्रमाण अधोलोक है - जिसका घनफल एक सौ छियालीस राजू प्रमाण है। उस अधोलोक का वर्णन पूर्व में किया है, इसके ऊपर सात राजू ऊँचा ऊर्ध्वलोक है। लोक के मध्य में एक लाख योजन ऊँचा सुमेरु पर्वत है, जिसका कथन पूर्व में किया है। लोक के मेरुतल भाग से उसकी चोटी पर्यन्त एक लाख योजन ऊँचा एक राजू प्रमाण विस्तार वाला और सात राजू प्रमाण लम्बा मध्य लोक है। इसी को तिर्यग् लोक कहते हैं। चित्रा पृथ्वी के ऊपर से मेरु की चोटी तक ९९,००० योजन ऊँचा और अढाई द्वीप प्रमाण अर्थात् ४५,००,००० योजन विस्तार वाला मनुष्य लोक है।
SR No.090058
Book TitleAradhanasamucchayam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavichandramuni, Suparshvamati Mataji
PublisherDigambar Jain Madhyalok Shodh Sansthan
Publication Year
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, & Religion
File Size10 MB
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