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________________ आराधनासमुच्चयम् : २२६ २. शर्करा पृथिवी के ११ इन्द्रक बिलों के स्तनक, तनक, मनक, वनक, घात, संघात, जिह्वा, जिह्नक, लोल, लोलुक और स्तनलोलुक नाम हैं। ३. बालुकाप्रभा पृथिवी के नौ इन्द्रक बिलों के नाम इस प्रकार हैं: तप्त, शीत, तपन, तापन, निदाघ, प्रज्वलित, उज्वलित, संज्वलित और संप्रज्वलित । ४. पंकप्रभा - भूमि के इन्द्रक बिलों के आर, मार, तार, तत्त्व, तमक, वाद और खड़खड़ नाम हैं। ५. धूमप्रभा पृथ्वी के बिलों के नाम हैं- तमक, भ्रमक, झषक, अन्ध और तिमिश्र । ६. तमप्रभा पृथ्वी के इन्द्रक बिलों के हिम, बदल और लल्लक नाम हैं। ७. महातम नामक सातवीं पृथ्वी में अप्रतिष्ठ नामक एक ही इन्द्रक बिल हैं। इन्द्रक, श्रेणीबद्ध और प्रकीर्णक बिलों के ऊपर अनेक प्रकार की तलवारों से युक्त, अर्धवृत्त और अधोमुख वाली जन्मभूमियाँ हैं। वे जन्मभूमियाँ धर्मा (प्रथम) को आदि लेकर तीसरी पृथिवी तक उष्ट्रिका, कोथली, कुम्भी, मुद्गलिका, मुद्गर, मृदंग और नालि के सदृश हैं। चतुर्थ व पंचम पृथिवी में जन्मभूमियों का आकार गाय, हाथी, घोड़ा भस्रा, अब्जपुट, अम्बरीय और द्रोणी जैसा है। छठी और सातवीं पृथिवी की जन्मभूमियाँ झालर (वाद्य विशेष ), भल्लक (पात्र विशेष), पात्री, केयूर, मसूर, शानक, किलिंज (तृण की बनी हुई टोकरी ), ध्वज, द्वीपी, चक्रवाक, शृगाल, अज, खर, करभ, संदोलक (झूला) और रीछ के सदृश हैं। ये जन्मभूमियाँ दुष्प्रेक्ष्य एवं महा भयानक हैं। उपर्युक्त नारकियों की जन्मभूमियाँ अन्त में करोत के सदृश, चारों तरफ से गोल, मज्जवमयी और भयंकर हैं। उपर्युक्त जन्मभूमियों का विस्तार जघन्य से ५ कोस, उत्कृष्ट रूप से ४०० कोस और मध्यमरूप से १०-१५ कोस है । जन्मभूमियों की ऊँचाई अपनेअपने विस्तार की अपेक्षा पाँच गुणी है। ये जन्मभूमियाँ ७,३, २,१ और पाँच कोण वाली हैं। जन्मभूमियों में १, २, ३, ५ और ७ द्वार कोण और इतने ही दरवाजे होते हैं। इस प्रकार की व्यवस्था केवल श्रेणीबद्ध और प्रकीर्णक बिलों में ही है। इन्द्रक बिलों में ये जन्मभूमियाँ तीन द्वार और तीन कोनों से युक्त हैं। ये जन्मस्थान एक कोस, दो कोस, तीन कोस और एक योजन विस्तार से सहित हैं। उनमें जो उत्कृष्ट स्थान हैं वे सौ योजन तक चौड़े कहे गये हैं । एक कोस, दो कोस, तीन कोस, एक योजन, दो योजन, तीन योजन और १०० योजन, इतना धर्मादि सात पृथिवियों में स्थित उष्ट्रादि आकार वाले उपपादस्थानों की क्रम से चौड़ाई का प्रमाण है और बाहय अपने विस्तार से पाँच गुणा है। बकरी, हाथी, भैंस, घोड़ा, गधा, ऊँट, बिल्ली, सर्प और मनुष्य आदि के सड़े हुए शरीरों के गन्ध की अपेक्षा वे नारकियों के बिल अनन्तगुणी दुर्गन्ध से युक्त होते हैं। नरकों में बकरी, हाथी, भैंस, घोड़ा, गधा, ऊँट, बिल्ली और मेढ़े आदि के सड़े हुए शरीर की गन्ध से अनन्तगुणी दुर्गन्ध वाली मिट्टी का आहार होता है। घर्मा पृथिवी में जो आहार (मिट्टी) है, उसकी गन्ध
SR No.090058
Book TitleAradhanasamucchayam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavichandramuni, Suparshvamati Mataji
PublisherDigambar Jain Madhyalok Shodh Sansthan
Publication Year
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, & Religion
File Size10 MB
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