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________________ आराधनासमुच्चयम् १५४ उ -- - - जघन्य काल । अन्तर्मुहूर्तसमयौ -- अन्तर्मुहूर्त और एक समय है। विरागचारित्रे - यथाख्यात चारित्र का काल । बेशो पूर्यकोटी - नु नाम इस कोटी पूर्व है। च - और जघन्य काल । समय: - एकसमय प्रमाण है। अर्थ - सूक्ष्मसाम्परायनामक चारित्र का एक जीव की अपेक्षा उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त प्रमाण है और जघन्यकाल एक समय है। कोई मुनिराज उपशम श्रेणी पर आरूढ़ होकर ११ वें गुणस्थान में गये तथा ११ वें गुणस्थान का काल समाप्त हो जाने पर वहाँ से च्युत होकर सूक्ष्मसाम्पराय नामक दसवें गुणस्थान को प्राप्त हुए। वहाँ पर एक समय पर्यन्त सूक्ष्म संयम में स्थित रहकर मरण को प्राप्त हो गये, अतः इस संयम का जघन्यकाल एक समय घटित होता है। __यथाख्यात चारित्र का उत्कृष्ट काल आठ वर्ष घाट एक कोटी पूर्व है। यह तेरहवें गुणस्थान की अपेक्षा है, जिनकी एक कोटी पूर्व की आयु होती है और आठ वर्ष की अवस्था में जैनेश्वरी दीक्षा ग्रहण कर अन्तर्मुहूर्त में जिन्होंने केवलज्ञान प्राप्त कर लिया है। आठ वर्ष घाट एक कोटी पूर्व काल तक तेरहवें गुणस्थान में रहकर मोक्ष प्राप्त किया, इस तेरहवें गुणस्थान में यथाख्यात चारित्र होता है। अत: एक जीव के प्रति यथाख्यातचारित्र का उत्कृष्ट काल एक कोटी पूर्व घटित होता है। एक मुनिराज उपशमश्रेणी पर आरूढ़ होकर ११वें गुणस्थान को प्राप्त हुए और वहाँ पर एक समय तक यथाख्यात चारित्र में रहकर मरण को प्राप्त हो गये वा पुन: वहाँ से च्युत होकर दसवें गुणस्थान में सूक्ष्मसाम्पराय संयम को प्राप्त हो गये। इस प्रकार यथाख्यात चारित्र का जघन्य काल एक समय घटित हो जाता है। मध्यम काल के अनेक भेद हैं। उपशम श्रेणी वाले चार गुणस्थानों का काल जघन्य एक समय है अतः यथाख्यात आदि संयम का जघन्य समय घटित होता है। _देशसंयम का जघन्य उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्तमपरं देशचरित्रे वदन्ति कालं हि । देशोनपूर्वकोटीमुत्कृष्टं विश्वतत्त्वज्ञाः ।।१०० ।। अन्वयार्थ - विश्वतत्त्वज्ञाः - विश्व के तत्त्व को जानने वाले केवली भगवान। देशचरित्रे - देशचारित्र में। अपरं - जघन्य । कालं - काल। हि - निश्चय से। अन्तर्मुहत - अन्तर्मुहर्त । वदन्ति - कहते हैं। उत्कृष्टं - उत्कृष्ट काल। देशोनपूर्वकोटि: - कुछ कम एक कोटी पूर्व कहा है। अर्थ - विश्वतत्त्व को जानने वाले सर्वज्ञ भगवान ने देशचारित्र का एक जीव के प्रति जघन्यकाल अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट काल आठ वर्ष कम एक कोटिपूर्व कहा है। यह आठ वर्ष घाट एक कोटिपूर्व काल कर्मभूमिया मनुष्यों की अपेक्षा है क्योंकि कर्मभूमिया मानव आठ वर्ष के पहले देशसंयम को धारण नहीं कर सकता, परन्तु तिर्यंचों की अपेक्षा अन्तर्मुहूर्त कम एक कोटिपूर्व है क्योंकि स्वयंभूरमण द्वीप में उत्पन्न होने वाले सम्पूर्छन मेंढ़क आदि तिर्यंच अन्तर्मुहूर्त के बाद देशसंयम प्राप्त कर सकते हैं इसलिए अन्तर्मुहूर्त कम एक कोटिपूर्व काल घटित होता है।
SR No.090058
Book TitleAradhanasamucchayam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavichandramuni, Suparshvamati Mataji
PublisherDigambar Jain Madhyalok Shodh Sansthan
Publication Year
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, & Religion
File Size10 MB
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