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________________ आराधनासमुच्चयम् - १५२ -. -..- -.-. युक्त हो जाने से औपशमिक कहलाते हैं और जब क्षपक श्रेणी पर आरूढ़ होते हैं तब चारित्रमोहनीय का क्षय करते हैं। इसलिए ये दोनों चारित्र क्षायिक भाव से युक्त होकर क्षायिक भाव कहलाते हैं। अत: ये दोनों चारित्र तीनों भावों से युक्त हैं। परिहारविशुद्धिसंयम क्षायोपशमिक भाव रूप ही है क्योंकि यह चारित्र छठे, सातवें गुणस्थान में ही होता है और इन दोनों गुणस्थानों में क्षायोपशमिक चारित्र होता है इसलिए परिहारविशुद्धिसंयम क्षायोपशमिक भाव है। अन्त के सूक्ष्मसापराय और यथाख्यात चारित्र औपशमिक और क्षायिक भाव रूप हैं। क्षपक श्रेणी पर आरूढ़ होने वाले के क्षायिक भाव हैं और उपशम श्रेणी पर आरूढ़ होने वाले के औपशमिक भाव हैं। सूक्ष्म साम्परायिक संयम दोनों श्रेणी वालों के होता है, अत: इसमें दोनों भाव हैं औपशमिक और क्षायिक। इसी प्रकार यथाख्यात चारित्र भी ११वें गुणस्थान में चारित्र मोहनीय के उपशम के साथ होता है अतः औपशमिक भाव से युक्त है तथा १२-१३-१४वें गुणस्थान में चारित्रमोहनीय के क्षय से होता है अत: इन तीन गुणस्थानों में रहने वाला होने से यह चारित्र क्षायिक भाव वाला भी है। देशचारित्र संयम पंचम गुणस्थान में होता है और पंचम गुणस्थान चारित्रमोहनीय के क्षयोपशम से होता है अत: देशसंयम में भी क्षायोपशमिक भाव है। यद्यपि पाँच चारित्र भिन्न हैं तथापि चारित्रमोहनीय के क्षयोपशम से यह सम्यग्दृष्टि जीव के होता है अत: इसको एकदेश या विकल चारित्र कहते हैं। इसका कथन पूर्व में विस्तार पूर्वक किया गया है। अविरति या असंयम औदयिक भाव है क्योंकि यह चारित्रमोहनीय के उदय से होता है। यह नाना परिणाम वाले मिथ्यात्व, सासादन, मिश्र और अव्रत इन चार गुणस्थानों में होता है। मिथ्यात्व गुणस्थान में दर्शनमोहनीय की प्रकृति मिथ्यात्व कर्म का उदय है अत: मिथ्यात्व गुणस्थान में अविरति औदयिक है। सासादन गुणस्थान अनन्तानुबन्धी के उदय से सम्यग्दर्शन की विराधना करके मिथ्यात्व में नहीं गया है, मिथ्यात्व के सम्मुख वाले जीव के होता है, चारित्रमोहनीय के अनन्तानुबंधी कषाय के उदय से इस गुणस्थान में आता है अत: इस गुणस्थान में होने वाली अविरति औदयिकी है। तीसरा गुणस्थान सम्यक्त्वमिथ्यात्व कर्मप्रकृति के उदय से हुआ है, अत: उसमें रहने वाली अविरति औदयिकी है। यद्यपि चतुर्थ गुणस्थान में दर्शनमोह का उपशम, क्षय और क्षयोपशम तीनों हैं, परन्तु चारित्रमोह का उदय है। अत: अविरति औदयिकी है। आचार्यों ने पाँच भावों में चारित्र को औपशमिक, क्षायिक और क्षायोपशमिक के भेद से तीन प्रकार का कहा है और देशसंयम को क्षायोपशमिक भाव कहा है, परन्तु अविरति को औदयिक भाव कहा है अतः अविरति औदयिकी है।
SR No.090058
Book TitleAradhanasamucchayam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavichandramuni, Suparshvamati Mataji
PublisherDigambar Jain Madhyalok Shodh Sansthan
Publication Year
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, & Religion
File Size10 MB
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