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आराधनासमुच्चयम् : ९२९
सामायिक, छेदोपस्थापना, परिहारविशुद्धि, सूक्ष्मसाम्पराय और यथाख्यात के भेद से पाँच प्रकार का है। विविध निर्वृत्तिरूप परिणामों की अपेक्षा सम्यक्चारित्र के संख्यात, असंख्यात और अनन्त भेद हैं। इस प्रकार कषायों की तरतमता से सम्यक्चारित्र के संख्यात, असंख्यात और अनेक भेद होते हैं, परन्तु संक्षेपतः चारित्र को दो भागों में विभक्त किया जाता रहा है सकल चारित्र और विकल चारित्र । चारित्र के इन सर्व भेदों
का कथन इस चारित्राराधना में किया है।
चारित्र के नाम और उनका लक्षण
प्राणीन्द्रियेषु षड्विधभेदेषु हि संयमचरित्रं तु । सामायिकादिभेदात्पञ्चविधं तद्विजानीयात् ॥ ८६ ॥
अन्वयार्थ - षड्विधभेदेषु छह प्रकार के । प्राणीन्द्रियेषु - प्राणी और इन्द्रियों में। संयमः संयमन करना । हि- निश्चय से चारित्रं - चारित्र है । तु परन्तु । तत् उस चारित्र को । सामायिकादिभेदात्- सामायिक आदि के भेद से। पंचविधं पाँच प्रकार का । विजानीयात् - जानना चाहिए ।
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अर्थ - पृथ्वीकाय, जलकाय, अग्निकाय, वायुकाय, वनस्पतिकाय और त्रसकाय की अपेक्षा प्राणी छह प्रकार के कहलाते हैं। स्पर्शन, रसना, प्राण, चक्षु, कर्ण और मन ये छह इन्द्रियाँ कहलाती हैं। इन छह काय के जीवों की विराधना नहीं करना प्राणिसंयम है और पंचेन्द्रियों व मन को वश में करना इन्द्रियसंयम है, यह संयम ही चारित्र है। यह चारित्र सामायिक, छेदोपस्थापना, परिहारविशुद्धि, सूक्ष्मसाम्पराय और यथाख्यात के भेद से पाँच प्रकार का है।
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सर्वप्रथम, चारित्र का प्रारंभ छह काय के जीवों की रक्षा करना और अपनी पाँच इन्द्रियों एवं मन को वश में करना तथा विषय-वासनाओं से मुख को मोड़ना है। इस परिणति के बिना चारित्र का प्रारंभ नहीं होता है। इसलिए आचार्यदेव ने सर्वप्रथम चारित्र का यही लक्षण किया है।
सामायिक चारित्र का लक्षण
सावद्ययोगविरतिः सर्वव्रतसमितिगुप्तिधर्माद्यैः ।
भेदैः रहितापि युता सामायिकसंयमो नाम ॥ ८७ ॥
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अन्वयार्थ - सर्वव्रतसमितिगुप्तिधर्माद्यैः सर्व व्रत, समिति, गुप्ति, धर्म आदि । भेदैः - भेदों से । रहितापि - रहित होकर भी । युता - इन भेदों से युक्त | सावद्ययोगविरति : - सर्वसावद्ययोग से विरक्ति । सामायिकसंयम:- सामायिक संघम | नाम
नाम है।
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अर्थ - पंचमहाव्रत, पंचसमिति, तीन गुप्ति, दश धर्म आदि चारित्र के भेदों की कल्पना जिसमें नहीं है, केवल सावद्य योग निर्वृत्ति जिसका लक्षण है, वह सामायिक चारित्र है ।
इसमें 'सावद्ययोगविरति' पद के ग्रहण करने से चारित्र के सर्व भेदों का संग्रह कर लिया गया है।