________________
आराधनासार - ५७
आलंबनानि चऊण त्यक्त्वा आराहउ आराधयतु । कोसौ । खवओ क्षपकः । कं। अप्पयं आत्मानं किंविशिष्टं । सुद्धं रागादिमलमुक्तं । अनादिकाले हि स्रक्चंदनवनितागीतनृत्याद्यनेकविधपंचेंद्रियविषयसुखाभिलाषुकेण निजशुद्धात्मोत्पन्नातींद्रियसुखात्पराङ्मुखेन जीवेन संसाराटव्यां पर्यटितं संप्राप्तं संसारशरीरभोगवैराग्यभावनाबलेन तानि विषयसुखानि निरस्य निश्चयाराधनारूपं निजपरमात्मतत्त्वमाराधनीयमिति भावार्थ: ॥ १५ ॥
ननु निश्चयाराधनैव मोक्षसाधिका किमनया भिन्नया चतुर्विधया व्यवहाराराधनया साध्यमिति वदतं
प्रत्याह:
भेयगया जा उत्ता चउव्विहाराहणा मुणिदेहिं ।
पारंपरेण सावि ह मोक्खस्स य कारणं हवइ ॥ १६ ॥
भेदगता या उक्ता चतुर्विधाराधना मुनीन्द्रैः ।
पारंपर्येण सापि हि मोक्षस्य च कारणं भवति ॥ १६ ॥
हवन भवति । किं । कारणं कार्यस्य साधनं कारणमित्युच्यते । कस्य | मोक्खस्स मोक्षस्य कृत्स्नकर्मविप्रमोक्षस्वरूपस्य च । पुनः का । सावि सापि । सापीति का । चउब्विहाराहणा चतुर्विधाराधना चतस्रो विधा प्रकारा यस्याः सा चतुर्विधा चतुर्विधासावाराधना च चतुर्विधाराधना
I
क्रे
हे क्षपक ! मिथ्यादर्शन के वशीभूत माला, चन्दन, स्त्री, गीत-नृत्यादि अनेक पंचेन्द्रिय विषयसुखों इच्छुक और निज शुद्धात्मा से उत्पन्न अतीन्द्रिय सुख से पराङ्मुख हुए इस संसारी जीव ने अनादि काल से जन्म-मरणादि हिंसक पशुओं से व्याप्त संसार अटवी में भ्रमण किया है। हे भव्यात्मा क्षपक ! इस समय संसार, शरीर और भोगों की विरक्त भावना के बल से विषयसुख का परित्याग कर निश्चय आराधना स्वरूप निज परमात्मतत्त्व की आराधना करनी चाहिए ।। १५ ।।
" निश्चय आराधना ही मोक्षसाधिका है तो अन्य भिन्न चार प्रकार की व्यवहार आराधना से क्या प्रयोजन है।" ऐसा कहने वाले शिष्य को आचार्य उत्तर देते हैं
जिनेन्द्र भगवान ने भेदगत चार प्रकार की जो आराधना कही है, वह भी परम्परा से मोक्ष का कारण होती है ॥ १६ ॥
सम्पूर्ण कर्मों का नाश है लक्षण जिसका ऐसे मोक्षरूप कार्य की कारण सम्यग्दर्शनादि चार प्रकार की व्यवहार आराधना है। जिनेन्द्र भगवान के द्वारा कथित सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान, सम्यक्चारित्र और तपरूप चार आराधना उद्योतन स्वरूप है, भेदगत है तथा परम्परा से मोक्ष का कारण है। जिस प्रकार निश्चय आराधना साक्षात् मोक्षफल रूप कार्य की साधिका है, वैसे व्यवहार आराधना साक्षात् मोक्षफल की