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३. तत्त्वसार
यह ७४ गाथाओं का ग्रन्थ है। इसमें आत्मतत्त्व का सुन्दर निरूपण है।
४, नयचक्र
यह ८७ गाथाओं का ग्रन्थ है। इसमें जैन सिद्धान्त में प्रचलित नय-उपनयों का उदाहरणों के साथ विवेचन किया गया है। इसका सर्वप्रथम प्रकाशन माणिकचन्द्र ग्रन्थमाला बम्बई की ओर से नयचक्र संग्रह' में किया गया था। इसी संग्रह में वृहत् नयचक्र' नाम से एक दूसरा नयचक्र भी छपा है। इसमें ४२३ गाथाएँ हैं। इसका असली नाम 'दव्वसहाव पयास (द्रव्यस्वभाव प्रकाश) है। इसके रचयिता माइल्ल कवि हैं। इन्होंने दोहाबद्ध नयचक्र को गाथाओं में परिवर्तित किया है। इसमें देवसेन के नयचक्र का समस्त विषय अन्तर्निहित किया गया है तथा ग्रन्थकर्ता ने नयचक्र के कर्त्ता देवेसन के प्रति श्रद्धा का भाव प्रकट किया है। ५. आलापपद्धति
यह जैन समाज का बहुप्रचलित ग्रन्थ है इसमें नयों के स्वरूप तथा भेद और उपभेद सरलता पूर्वक समझाये गये हैं। सरल संस्कृत में इसकी रचना है। रचना पद्यरूप न होकर गद्य रूप है। जान पड़ता है आचार्य देवसेन ने अपने नयचक्र का सरलता से ज्ञान कराने के लिए इस आलापपद्धति की रचना की है। इसका पुष्पेिका वाक्य भी है :
_ 'इति सुखबोधार्थमालापपद्धति विरचिता' इसके कई जगह से हिन्दी अनुवाद सहित संस्करण प्रकाशित हो चुके हैं। आलापपद्धति की कितनी ही प्रतियों में इसका नाम नयचक्र भी लिखा मिलता है। ६. आराधनासार
देवसेन मुनिराज के द्वारा रचित है। इस ग्रन्थ के टीकाकर्ता रत्नकीर्ति हैं जिन्होंने स्वयं अपना परिचय इस प्रकार लिखा है
अश्वसेनमुनिशोऽभूत् पारदृश्वा श्रुतांबुधैः ।
पूर्णचंद्रायितं येन स्याद्वादविपुलांबरे ॥१॥ अश्वसेनेति - शास्त्र रूपी समुद्र के पारदर्शी अश्वसेन नामके एक मुनि थे जो कि स्याद्वाद रूपी आकाश में पूर्ण चन्द्रमा के समान आचरण करते थे।।१।।
श्रीमाथुरान्वयमहोदधिपूर्णचंद्रो निधूतमोहतिमिरप्रसरो मुनींद्रः ।। तत्पट्टमंडनमभूत् सदनंतकीर्ति-या॑नाग्निदाधकुसुमेषुरनंतकीर्तिः ॥२।।