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आराधनासार १२६
मुनि श्रुतसागर ने हाथ जोड़ नमस्कार कर विनय से पूछा "गुरुदेव ! कोई ऐसा उपाय है जिससे संघ की रक्षा हो सकती हो?" गुरुदेव ने कहा "जहाँ तुमने मंत्रियों के साथ शास्त्रार्थ किया था, उसी स्थान पर जाकर रात्रिमें कायोत्सर्ग से खड़े रहो तो संघ की रक्षा हो सकती है, अन्यथा नहीं।" धन्य है श्रुतसागर मुनि जिन्होंने संघ की रक्षा के लिए रात्रि में वहाँ जाकर कायोत्सर्ग करना स्वीकार कर लिया। वे उसी समय 'उस स्थान पर जाकर आत्मध्यान में लीन हो गए।
जब मुनिराज के साथ शास्त्रार्थ में चारों मंत्रिगण परास्त हो गये तब उन्होंने बिना कारण क्रोधित होकर अपने मन में उनको मारने का निश्चय किया। ठीक ही है, अज्ञानी मिध्यादृष्टि को तत्त्व का उपदेश रुचिकर नहीं होता। उसी दिन एक प्रहर रात्रि बीत जाने पर वे चारों मंत्री हाथ में तलवार लेकर सर्वसंघ का सर्वनाश करने के लिए निकल पड़े। मार्ग में श्रुतसागर मुनिराज को देखकर उन्होंने विचार किया कि बड़े भाग्य से हमारा शत्रु यहीं मिल गया। इस समय अपनी मानहानि करने वाले का वध कर अपमान का प्रतिशोध लेना चाहिए। इस प्रकार चारों ने निश्चय कर मुनि का मस्तक विदीर्ण करने के लिए उनकी ग्रीवा पर खड्ग का प्रहार किया। परन्तु मुनिराज के तप के प्रभाव से शासन देवता ने आकर मुनि की ग्रीवा पर तलवार खींचे हुए दुष्ट मंत्रियों को खड्ग सहित स्तंभित कर दिया।
प्रातःकाल होते ही मंत्रियों के दुष्कृत्य के समाचार बड़वानल के समान सारे नगर में फैल गये। सारे नगर निवासी उन्हें देखने के लिए दौड़ पड़े। राजा भी उनको देखने के लिए गया ।
सारी जनता ने एक स्वर में मंत्रियों को धिक्कारना प्रारंभ किया। ठीक ही है- निरपराध महापुरुषों को कष्ट देने वाले इस लोक में धिक्कार अपयश आदि को प्राप्त होते हैं और परलोक में दुर्गति में जाते हैं। अन्त में, शासनदेवता ने प्रकट होकर मंत्रियों की भर्त्सना की, ताड़ना की और उनको बंधनमुक्त कर दिया तथा मुनिराज के चरणारविन्द की पूजा करके शासनदेवता अपने स्थान पर चले गए।
राजा श्रीवर्मा मंत्रियों की इस दुष्टता को जान कर बहुत क्रोधित हुआ । उसने उनको मंत्रिपद से च्युतकर गधे पर चढ़ाकर स्वकीय राज्य की सीमा से बाहर निकाल दिया। ठीक ही है- पापियों को दण्ड मिलना ही चाहिए।
निष्कासित मंत्रियों के भाग्यचक्र ने पलटा खाया और वे चारों हस्तिनापुर के अनुशास्ता पद्मनामक राजा के राज्य में जाकर पद्म राजा के शत्रु सिंहबल को अपने पराक्रम से वश कर, उसे पद्म के आधीन कर उसके मंत्री बन गए। राजा ने खुश होकर इच्छित वस्तु मांगने के लिए प्रेरित किया परन्तु उन्होंने कहा “समय आने पर याचना करेंगे। अतः अभी हमारा वर आपके पास धरोहर में सुरक्षित रहे । "
कुछ दिन बाद अनेक देशों में विहार कर धर्मप्रचार करते हुए अकम्पनाचार्य संघ सहित हस्तिनापुर