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श्रवणबेल्गोल में बाहुबली की मूर्ति-प्रतिष्ठापमा
रहा है।
जिस स्थान पर बैठकर चामुण्डराय शिल्पियों को पारिश्रमिक और अभावग्रस्त व्यक्तियों को दान दिया करते थे, जिस स्थान पर जैन धर्म की उदार संस्कृति ने कर्नाटक की जनता में प्रचलित ब्रह्मदेव की उपासना को अपनत्व ही नहीं दिया, उसे जिन-शासन की रक्षा के दायित्व का देवता बनाकर स्तम्भ-शीर्ष पर आसन भी दिया, वह स्थान आज 'त्यागद ब्रह्मदेव' के नाम से प्रसिद्ध है । वहाँ स्वयं चामुण्डराय ने ब्रह्म-स्तम्भ का निर्माण करा दिया था। इस स्तम्भ को आचार्य भद्रबाहु द्वारा दक्षिण प्रान्त में लायी गयी सार्वभौम जैन संस्कृति की सामथ्यं प्राप्त हुई। यही कारण है कि यह स्तम्भ अलौकिक चमत्कार का साक्षी हो गया । यह अधर में स्थित है। एक समय था जब तीर्थयात्री स्तम्भ के नीचे से आर-पार रूमाल निकालकर चमत्कार का प्रत्यक्ष दर्शन करते थे। आज भी इस स्तम्भ के तीन कोने प्रायः अधर में स्थित हैं।
जैन आचार्यों की इस दूरदर्शिता के लिए, उनकी समन्वय भावना के लिए हमें कृतज्ञ होना चाहिए कि अहिंसा और अनेकान्त के सिद्धान्त के बल पर उन्होंने जैन स्थापत्य में ब्रह्मदेव को समाविष्ट कर लिया। कर्नाटक में प्राय: प्रत्येक बड़ी जिन बसदि, प्रत्येक बड़े मन्दिर, के सामने मानस्तम्भ है, मानस्तम्भ पर ब्रह्मदेव की मूर्ति निर्मित है । ब्रह्मदेव घोड़े पर विराजमान हैं। उनके दायें हाथ में फल है जो उनकी कृपा-भावना का प्रतीक है। उनके बायें हाथ में चाबुक है जो धर्म से विमुख होने वालों के लिए दण्ड-विधान का प्रतीक है। उनके पांव में खड़ाऊँ हैं . जिसका अभिप्राय है कि मन्दिर की पवित्रता का वह आदर करते हैं। कर्नाटक की जनता जब अपने इस देवता को मानस्तम्भों पर देखती है-एक-से-एक बड़े और ऊँचे मानस्तम्भों पर, जिन्हें जैन राजपुरुषों, सेट्टियों (श्रेष्ठियों) और धनवानों ने स्थान-स्थान पर बनवाया है—तब वह जैन मन्दिरों को अपना समझती है और सोचती है कि जिस तीर्थंकर-धर्म की रक्षा ब्रह्मदेवता घोड़े पर चढ़कर स्वयं करते हैं, जो अत्याचारियों को दण्ड देने के लिए चाबुक हाथ में लिये हुए हैं; उन धर्मस्थानों को सुरक्षित रखना, उन्हें संकट से बचाना प्रत्येक स्त्री-पुरुष का कर्तव्य है । ___ यही कारण है कि कर्नाटक के जैन मन्दिरों को समय की लीला ने कितनी ही क्षति पहुँचायी हो, धार्मिक सहिष्णुता ने उन्हें सुरक्षित रखा। __ त्यागद ब्रह्मदेव विन्ध्यगिरि के शिखर पर निर्मित गोम्मटेश्वर की मूर्ति का मुखमण्डल आज एक हजार साल से निहार रहे हैं। कैसी अनुपम है वह मूर्ति !
भगवान बाहुबली के दर्शन : साक्षात्कार का पुलक
प्रकृति की भरपूर गरिमा और क्षेत्रीय सुषमा के लावण्य से मनोरम श्रवण. बेल्गोल का परिवेश इतना मोहक है कि यात्री मन्त्रमुग्ध सा बढ़े चला जाता है ।