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श्रवणबेल्गोल में बाहुबली की मूर्ति प्रतिष्ठापना
61 भक्तिभाव से सोने का एक तीर छोड़ो और देखो कि क्या होता है।" ___ अन्तर की निर्मल भावनाओं का यह सुयोग और यह प्रताप कि यही स्वप्न चामुण्डराय की माता को भी हुआ और उनके गुरु नेमिचन्द्र सिद्धान्तचक्रवर्ती को भी।
अगले दिन प्रातःकाल चामुण्डराय ने जब विधिवत् विनम्र भाव से तीर छोड़ा तो आश्चर्य का ठिकाना न रहा कि सामनेवाली पहाड़ी की चट्टान की परतें गिरने लगीं और भगवान बाहुबली की मूर्ति का मस्तक-भाग स्वतः स्पष्ट होने लगा। अब प्रश्न उठा कि पर्वत-पाषाण की परतों को हटाकर मूर्ति को आकार देने वाला शिल्पी कौन हो?
शिल्पी की खोज : त्यागद ब्रह्मदेव ___ कहा जाता है कि चामुण्डराय ने राज्य के प्रधान शिल्पी अरिष्टनेमि को बुलाकर अपना अभिप्राय बताया कि भगवान बाहुबली की विशाल प्रतिमा का निर्माण कराना है जिसके लिए सहायक कुशल शिल्पियों की खोज आवश्यक होगी। मूर्ति की विशालता की कल्पना देने के लिए चामुण्डराय ने शिल्पी को अपनी माता के मन में उत्पन्न बाहुबली-दर्शन की उत्कट अभिलाषा का प्रसंग बतलाया और कहा कि उत्तर भारत में तक्षशिला के निकट प्राचीन पोदनपुर नगर में महाराज भरत ने जो पन्ने की प्रतिमा निर्मित करायी थी, वैसी विशाल मूर्ति यहाँ विन्ध्यगिरि पर निर्माण करनी है। . चाण्डराय ने शिल्पी को वह पाषाण-शिखर भी दिखलाया जहां स्वप्न-निर्दिष्ट विधि से छोड़ा गया तीर पहुंचा था। शिल्पी ने विन्ध्यगिरि के उस शिखर को
आँखों-ही-आँखों में नाप लिया और मूर्ति की विशालता का अनुमान मन में बैठा लिया।
"इतनी विशाल मूर्ति के निर्माण में तो बहुत समय लग जायेगा", शिल्पी ने मन-ही-मन सोचा। "और, इतने महान् उपक्रम का पारिश्रमिक चामुण्डराय क्या देंगे?" यह प्रश्न भी उसके अन्तस् में बार-बार उठ रहा था। • "क्या सोच रहे हो, अरिष्टनेमि," चामुण्डराय ने अधीर होकर पूछा । "क्या यह निर्माण तुमसे हो नहीं पायेगा? या सोचते हो कि इसका पारिश्रमिक क्या होगा ?"
"हो क्यों नहीं पायेगा, स्वामी ! किन्तु सचमुच, पारिश्रमिक की राशि बता पाना इतना कठिन लगता है कि मन में दुविधा उत्पन्न होती है,' शिल्पी ने अपनी कठिनाई स्पष्ट कर दी।
"दुविधा छोड़ो, शिल्पी ! कहो क्या चाहते हो?"
शिल्पी ने निःशंक होकर कहा--"इस शिला में से मूर्ति का स्थूल आकार छांट लूंगा। फिर मूर्ति के निर्माण में जितना पाषाण उँटता जायेगा, जितने पाषाण