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अन्तर्द्वन्द्वों के पार
निन्दा करने लगेंगे। 16. काले हाथियों का युद्ध यह व्यक्त करता है कि मेघ आशानुकूल वर्षा नहीं __ करेंगे।" (61)
स्वप्नों की यह अशुभ एवं दुःखद भविष्य-वाणी सुनकर सम्राट चन्द्रगुप्त अत्यन्त चिन्तित होते हुए, राजप्रासाद लौट आये (62)। चन्द्रगुप्त ने विरक्त होकर राजपाट त्यागने का निश्चय किया। इस समाचार से महारानी दुखी हुई, राजपुरुष उदास हुए। सबने सम्राट् से प्रार्थना की कि वे राजपाट न छोड़ें किन्तु सम्राट अपने निश्चय पर दृढ़ रहे। उन्होंने महारानी और सेवकों का समाधान करने का प्रयत्न किया (63) । अन्त में चन्द्रगुप्त ने आचार्य भद्रबाहु से दीक्षा ले ली। कुछ महिलाओं ने भी दीक्षा ली और केशलोंच किया (64-65) । चन्द्रगुप्त ने मुनिसंघ में सम्मिलित होकर (66) मुनियों के साथ वन-प्रान्तरों में आत्म-ध्यान का अभ्यास किया (67)। मुनिसंघ के शील स्वभाव से प्रभावित होकर वनदेवी संघ की सेवा में उपस्थित हुई और उसने अपना प्रणाम निवेदन किया (68)। मुनि चन्द्रगुप्त का ध्यान-अभ्यास बढ़ता गया और वे आचार्य की उपस्थिति में कार्योत्सर्ग मुद्रा के अभ्यस्त हो गये (69) । संघ के अन्य मुनियों के साथ वे ध्यानमग्न रहते (70) और, सुदूर वन के एकान्त में भी वे एकाकी ध्यानस्थ होते (79)। उनके आसपास वन-पशु निर्मय विचरण करते (72) । चन्द्रगुप्त मुनि जहाँ-जहाँ विहार करते, वनदेवता उनकी सेवा में उपस्थित रहते (73) । चन्द्रगुप्त को आचार्य भद्रबाहु ने उस शिशु की कथा भी सुनायी, जिसने उनसे 'जाओ, जाओ' कहकर और बारह की संख्या का संकेत देकर बारह वर्ष के अकाल की चेतावनी । दी थी। (74-75-76)।
. आचार्य भद्रबाहु निर्णय कर चुके थे कि दुष्काल में संघ की रक्षा के लिए, धर्म के प्रचार के लिए और चारित्र को अक्षुण्ण रखने के लिए दक्षिण जाना आव.श्यक है । अन्त में एक दिन प्रस्थान की घोषणा हो गयी (77)। ___ आचार्य भद्रबाहु का यह अभिप्राय जानकर अनेक राज-महिलाएँ (78) एवं समृद्ध श्रेष्ठी एकत्रित हुए और उनसे निवेदन किया कि वे यह प्रदेश छोड़कर न जायें, यहीं ठहरें (79) । उत्तरापथ में रह जाने वाले मुनियों ने भी ऐसी ही प्रार्थना की (81)। जब भद्रबाहु ने स्वीकृति नहीं दी तो भक्तों ने अन्य मुनियों से ठहरने का निवेदन किया। इस प्रकार की प्रार्थना करने वालों के अनेक नाम 'भद्रबाहु-चरित्र' में आते हैं। जैसे-कुवेर, मित्र, जिनदास, माधवदत्त, बन्धुदत्त आदि । प्रत्येक ने कहा-'हमारे पास धन-धान्य की कमी नहीं है। हम अपनी सम्पदा को धर्म के कार्यों में लगाना चाहते हैं। आप यहीं निश्चिन्त होकर ठहरें। मुनिसंघ को किसी प्रकार का कष्ट नहीं होगा' (81)।