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चन्द्रगुप्त मौर्य का उदय
. इस प्रसंग में चन्द्रगुप्त और चाणक्य की कथा में एक विचित्र उल्लेख है कि चाणक्य ने भविष्य में विषकन्याओं के प्रभाव से चन्द्रगुप्त को सुरक्षित रखने के लिए यह व्यवस्था कर ली थी कि चन्द्रगुप्त के आहार में धीरे-धीरे विष की मात्रा बढ़ती रहे और वह विष का इतना अभ्यस्त हो जाये कि यदि कोई विषकन्या उसके सम्पर्क में आये तो भी चन्द्रगुप्त सुरक्षित रहे । चन्द्रगुप्त जिस प्रकार विष के प्रभाव से सुरक्षित था, उसकी कथा इस प्रकार है:
सम्राट् चन्द्रगुप्त एक दिन आहार कर रहे थे कि उस समय उनकी गर्भवती राजमहिषी के मन में दोहद उत्पन्न हुआ कि वह सम्राट के साथ भोजन करे। अपनी प्रबल इच्छा के कारण महारानी ने चन्द्रगुप्त की थाली में से भोजन का एक कौर उठाकर खा लिया। भोजन में मिले हुए विष का प्रभाव महारानी के शरीर पर छा गया और वह अचानक मूर्छित हो गई। महाराज चन्द्रगुप्त ने महारानी की प्राण-रक्षा का पूर्ण प्रयत्न किया, किन्तु वे महारानी की आकस्मिक अस्वस्थता का कारण न जान सके। चाणक्य समझते थे कि महारानी के अचानक रोग-ग्रस्त होने का वास्तविक कारण क्या है। चाणक्य ने तत्काल शल्य-चिकित्सा का प्रबन्ध किया और गर्म में स्थित बालक को निकलवाकर उसके प्राण बचा लिये गये। महारानी की मृत्यु हो गई। माँ ने जो विषला भोजन खाया था, उसका प्रभाव बालक पर कुछ विशेष नहीं हुआ, केवल उसके माथे पर एक नीला निशान बन गया। ललाट पर उभरे नीले बिन्दु के कारण चन्द्रगुप्त ने बालक का नाम बिन्दुसार रखा। ___ इतिहास में बिन्दुसार अपने राज्य-विस्तार के लिए और जैनधर्म की प्रभावना के लिए अत्यन्त प्रसिद्ध हैं, किन्तु अभी हम केवल चन्द्रगुप्त मौर्य की ही बात कर रहे हैं।
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