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अन्तर्द्वन्द्वों के पार
नायक बालक की कथा सबको मालूम थी । साथियों ने बताया कि इसके मातापिता कौन हैं और किस तरह इसकी माता को चन्द्रमा का दोहद हुआ था, किस प्रकार एक ब्राह्मण ने उस दोहद को पूरा किया था, और किस तरह उसने इसे अपने साथ ले जाने का वचन ले रखा था। पता नहीं वह विप्र कब आ जाये और इसे अपने साथ ले जाये ।
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"मैं ही हूँ वह विप्र, " चाणक्य ने बताया । प्यार से उसने चन्द्रगुप्त के सिर पर हाथ फेरा और कहा - "बेटा, तुम खेल - खेल में राजा बने हुए हो। मैंने ही तुम्हारी माता का असंभव दोहद पूरा किया था । चलो मेरे साथ, मैं तुम्हें सचमुच का राजा बना दूंगा । "
चन्द्रगुप्त उस विप्र के साथ चलने को उद्यत हो गया। ऐसा ही आकर्षण था उसके व्यक्तित्व में, ऐसी ही पक्की लगन थी चन्द्रगुप्त के मन में राजा बनने की और ऐसा ही अटल विश्वास था चाणक्य के मन में कि नये राज्य की प्रस्थापना इसी बालक के माध्यम से पूरी होगी ।
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चाणक्य ने बालकों से मात्र इतना ही कहा- " जाकर बता देना इसके नानानानी को कि ब्राह्मण गुरु आये थे और अपने शिष्य को साथ ले गये हैं । वचन पूरा करने का समय आ गया था, अतः घर वाले चिन्ता न करें।"
अनहोनी-सी बात ! गुरु-शिष्य यात्रा पर चल दिये ।
चाणक्य ने बहुत परिश्रमपूर्वक, सावधानी से सारी विद्याएँ चन्द्रगुप्त को सिखायीं । कला-कौशल और अस्त्र-शस्त्र का ज्ञान भी कराया। धीरे-धीरे स्थानस्थान पर युवकों की मंडली चन्द्रगुप्त के नेतृत्व में गठित होती गई ।
चन्द्रगुप्त की तरुणाई का जब तेजोदय हो रहा था, उस समय भारत के पराभव की व्यथा राष्ट्र को कचोट रही थी । ईसा पूर्व 326 में भारत पर जब यूनानी सम्राट् सिकन्दर का आक्रमण हुआ तब राष्ट्र की शक्ति क्षीण हो चुकी थी । युद्ध-विद्या में यूनानी निपुण थे। चाणक्य ने चतुराई से चन्द्रगुप्त को यूनानी सेना
भरती करा दिया, ताकि वह सेना संचालन की कला सीख ले। चन्द्रगुप्त को देखने-सीखने का अवसर मिला, किन्तु एक दिन उसे बन्दी बना लिया गया, इस आरोप में कि वह गुप्तचर है । जब चन्द्रगुप्त को सेना नायक के सामने उपस्थित किया गया, तो नायक इस युवक के साहस और आत्मविश्वास से इतना प्रभावित हुआ कि इसे बन्धन मुक्त कर दिया ।
सिकन्दर लौट गया तो चाणक्य ने चन्द्रगुप्त के नेतृत्व में पांचाल के वाह्वीकों यूनानियों के विरुद्ध विद्रोह की भावना जगायी। तीन वर्ष के परिश्रम के बाद मगध साम्राज्य की सीमा पर चाणक्य ने चन्द्रगुप्त का एक छोटा-सा राज्य स्थापित करवा दिया। सैन्य दल भी इक्ट्ठा हो गया क्योंकि नन्दों का शासन बहुत हिंसक और अन्यायपूर्ण हो चुका था । प्रजा आतंकित थी और कुशासन से मुक्ति चाहती