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अन्तर्वनों के पार महाराज भरत मुसकाये । उन्होंने अपने प्रधान अमात्य को बुलाया । वृद्ध विप्र की शंका उसके सामने रखी और कहा :
"इनका समाधान आप कर दें।"
विप्र ने विनम्र होकर कहा, "प्रश्न आपसे है, अनुभव आपका है, समाधान अन्य कोई व्यक्ति कैसे करेगा ?"
चक्रवर्ती फिर मुसकाये । बोले
"आप चिन्ता न करें, विप्र! मैं अमात्य को स्वयं ही सब बताने वाला था कि मेरे विषय में आपकी शंका का समाधान किस प्रकार करना है। आप कल प्रातःकाल इनसे इनकी कार्यशाला में मिलें । मैं इन्हें प्रमाण-प्रस्तुति की विधि बता देता हूँ।" ___ अगले दिन प्रातःकाल परीक्षक विप्र, अमात्य के पास पहुंचा। अमात्य ने पास खड़े दो खड्गधारी सैनिकों को बुलाया । वृद्ध ब्राह्मण से कहा-"विप्रवर, माप सामने देख रहे हैं, चौकी पर यह क्या रखा है ?" ब्राह्मण ने बताया-"तेल से भरा कटोरा।"
"पूरा भरा है, या कुछ खाली है ?" "कुछ खाली है।"
"तब, माप पास वाले पान में से तेल उंडेल कर इस कटोरे को पूरा भर लें, इतना कि सारे किनारे डूबे रहें किन्तु एक बूंद भी अधिक न होने पाये कि बाहर छलके । रूई की एक बाती भी जला लें।"
। बहुत सावधानी से विप्र ने एक-एक बूंद डालकर कटोरा पूरा-पूरा भर लिया, बाती जला ली, और अपनी कुशलता पर प्रसन्न होकर बोला-"अमात्य महोदय, देखिये कितनी सावधानी और सतर्कता से मैंने कटोरा भरा है । एक बूंद की जगह भी अब खाली नहीं, और, एक भी बूंद गिरने नहीं पायी। बाती भी जल रही है किन्तु आपने मुझे जिस हेतु बुलाया उसके विषय में तो बताइये।"
__ "वही है यह विषय, विप्र! आपकी सतर्क दृष्टि से मैं प्रसन्न हूँ। वही अब स्वयं प्रमाण खोजेगी। ऐसा कीजिए कि यह कटोरा सावधानी से अपने हाथों में उठा लीजिए। आज आपकी अभ्यर्थना के लिए मैंने समस्त राज-प्रासाद की नाना प्रकार से साज-सज्जा करवायी है। अनेक प्रदेशों के सैनिक अपनी-अपनी रंगबिरंगी वेश-भूषा में आपके चित्त को आकर्षित करेंगे। प्रासाद-वासी आपको नाना प्रकार की वस्तुएं मेंट में देने के लिए तत्पर मिलेंगे। प्रसन्नचित्त से आप उन्हें स्वीकार करते चलें । आप प्रदक्षिणा लगा आयें। केवल इतना ध्यान रखें कि तेल की एक बूंद भी छलकने न पाये । और हथेलियों के कौशल से बाती की लौ न बुझने पाये। अन्यथा इसमें बहुत विपत्ति है। ये जो असिधारी सैनिक आपके अगल-बगल चलेंगे, इन्हें मालूम है कि यदि तेल की एक बूंद छलकती है या बाती बुझती है तो