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भरत चक्रवती का साम्राज्य-विस्तार
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पर पटक कर आहत करने की कल्पना से मन पिवल गया। सोचा, ये मेरे बड़े भाई हैं, इन्हें जमीन पर पटकना क्या ठीक होगा? और, धीरे से हथेलियों को नीचे की
ओर झुलाते हुए उन्होंने भरत को धरा पर उतार दिया। अब तो बाहुबली की सेना ने हर्षध्वनि से आकाश हिला दिया। दूसरी ओर फिर मरघट का-सा सन्नाटा। तभी भरत के मन के श्मशान में हजार-हजार ज्वालाएँ धू-धू कर उठीं ! उसने घनीभूत क्रोध के चक्रावात में अपना चक्र चला दिया।
चक्रवर्ती का चक्र जब छूटता है तो वह विरोधी का सिर काटकर ही वापस आता है। 'हाय, भरत ने चक्र चला दिया !' लाखों कण्ठों का चीत्कार।
चक्र वेग से बाहुबली के सिर के पास पहुँचा। लेकिन, अचानक ही उसकी गति रुक गई। उसने बाहुबली के मस्तक की तीन प्रदक्षिणाएँ की और वापस आकर स्थिर हो गया। ___ भरत अपने क्रोध के चरम आवेग में यह भूल गये थे कि प्राण-लेवा यह चक्र अपने वंशजों पर नहीं चलता। भरत का अंग-अंग, रोम-रोम पराजय की यन्त्रणा में जलने लगा। क्रोध का नागफन अपने ही उद्धत अहंकार की शिला से टकराकर क्षत-विक्षत हो गया।
बाहुबली ने अपने बड़े भाई के पराजित, हताश, अभिशप्त, उदास चेहरे को देखा तो हृदय पसीज कर आँखों में छलछला आया।
"इसी अहंकार के दैत्य की सेवा करने के लिए भरत ने मेरे राज्य पर आक्रमण करना चाहा था? दो वीरों के आमने-सामने के व्यक्ति-युद्ध की मर्यादा भूलकर उसने चक्र का सहारा लिया ? मेरे सिर को काट गिराने के प्रयत्न से नहीं चूका ? धिक्कार है इस क्रोध पर, इस अभिमान और इस राज्य-लिप्सा पर !!"
बाहुबली ने प्रतिज्ञा की कि राज्य छोड़कर वह संन्यासी हो जाएंगे। दे वन में तपस्या करेंगे और उस रहस्य का पता लगाएंगे जिससे क्रोध पर विजय पायी जाती है, जिससे अभिमान को जीता जाता है, जिससे लोभ को वश में किया जाता है, जिसमें सिर्फ करुणा और प्यार का अमृतजल होता है जिससे आदमी के सूखे कण्ठ को सींचा जाता है । अपरिमित करुणा से द्रवित होकर उन्होंने भरत की ओर देखा और वन की ओर चरण बढ़ा दिये 1 ___ अब पराजित, अभिशप्त, दीन और नितान्त निराश्रित भरत अपनी टूटती हुई देह-वल्लरी को किसके सहारे थामे ? उसने लपककर बाहुबली के चरण पकड़ लिये। बाहुबली सकुचाये।
"भइया, तुम चक्रवर्ती हो। अपनी मर्यादा का ध्यान करो।"
"नहीं, नहीं, मैं चक्रवर्ती नहीं हूँ, तुम्हारा भाई हूँ। और तुम साथ नहीं होगे तो मेरा चक्रवर्तित्व किस काम का ? कौन मुझे सहारा देगा ?"
"अब नहीं भइया, मैं तो तीर्थंकर के पास भी नहीं जा रहा हूँ । स्वयं ही अपना